नई दिल्ली।। हिंदू मान्यताओं के अनुसार शादी के बाद सिंदूर और चुड़ियां महिलाओं का श्रृंगार होती है. लेकिन एक महिला ने महज इसलिए सिंदूर लगाने और चूड़ी पहनने से मना कर दिया क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि वह शादीशुदा दिखे. बस फिर क्या था.
पत्नी का कहना था कि ये उसे बोझ लगते हैं, पत्नी मॉडन लगना चाहती और इसके लिए वह यह नहीं बताना चाहती थी कि वह विवाहित है. लिहाजा पत्नी के इन्हीं नखरों को देखते हुए पति ने तलाक के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और गौहाटी हाई कोर्ट ने तलाक के एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर कोई हिंदू महिला विवाहित है और वह सिंदूर और चूड़ी पहनने से मना करती है तो इसका अर्थ साफ है कि उसे शादी मंजूर नहीं है. लिहाजा पीड़ित को तलाक दे दिया जाए.
लेकिन हाई के मुख्य न्यायाधीश अजय लांबा और जस्टिस सौमित्र सैकिया की दो सदस्यीय खंडपीठ ने इस पर पारिवारिक अदालत के फैसले को पलट दिया और तलाक को मंजूर कर दिया. जबकि पारिवारिक अदालत ने पति को तलाक नहीं दिया. असल में पारिवारिक कोर्ट ने यह कहते हुए पति को तलाक नहीं दिया कि पत्नी का चूड़ी और सिंदूर नहीं पहनना उसके साथ अत्याचार नहीं है. वहीं हाईकोर्ट ने कहा कि सभी परिस्थितियों में अगर पति को तलाक नहीं मिला और उसे पत्नी के साथ रहने को मजबूर किया जाए तो यह उसका उत्पीड़न होगा.
कोर्ट ने कहा कि पत्नी अगर साखा चूड़ी और सिंदूर नहीं लगाना चाहती है और वह कुंवारी दिखाना चाहती है तो इसका अर्थ साफ है उसे शादी मंजूर नहीं है. पत्नी का इस तरह का व्यवहार यह जताता है कि वह अपने विवाह को जारी रखना नहीं चाहती है. असल में पारिवारिक अदालत ने पति की याचिका पर तलाक की मंजूरी नहीं देने के बाद पति ने इसके खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की थी और उसे हाईकोर्ट में न्याय मिला था.