क्या कोरोना वैक्सीन को लेकर हर भारतीय पारसियों के क़र्ज़दार है?
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क्या कोरोना वैक्सीन को लेकर हर भारतीय पारसियों के क़र्ज़दार है?

   देश भक्त, दयालु कर्मठ, धार्मिक और भारत में मात्र 0.000000000001% जनसंख्या वाले पारसियों पर हर भारतीयों को पारसियों पर यह जानकार बहुत गर्व होगा।
    कोविड वैक्सीन बनाने वाली कंपनी सीरम एक पारसी उद्योगपति की है जिसका नाम है आदार पूनावाला। आदार पूनावाला ने बॉम्बे पारसी पंचायत 60000 वैक्सीन ऑफर किया था कि पारसी लोगों को पहले वैक्सीन लग जाए लेकिन बॉम्बे पारसी पंचायत के अध्यक्ष और उसके अलावा प्रख्यात उद्योगपति रतन टाटा ने यह कहा कि हम पहले भारतीय हैं बाद में पारसी हैं हमें वैक्सीन तभी चाहिए जब सभी भारतीयों को वैक्सीन मिलेगी।
फैक्ट्री से शुरू हो रही वैक्सीन आगे कैसे बढ़ती है वह देखिए
     वैक्सीन जिस कांच की शीशी में यानी व्हाईल में पैक होती है उसे भी एक पारसी की कंपनी बनाती है इसका नाम स्कॉट्सलाइस है जिसके मालिक रीशाद दादाचन्दजी हैं। वैक्सीन को पूरे भारत में ट्रांसपोर्टेशन के लिए रतन टाटा ने अपनी कंपनी की रेफ्रिजरेटेड वाहन मुफ्त में दिया है।
    यदि वैक्सीन को हवाई मार्ग द्वारा जेट से भेजना होता है तो उसके लिए एक दूसरे पारसी श्री जाल वाडिया ने अपने 5 जेट को दिया है। वैक्सीन को रखने के लिए जिस ड्राई आइस यानि लिक्विड कार्बन डाइऑक्साइड का प्रयोग किया जा रहा है उसे भी एक पार्टी फ़रोक दादाभोई दे रहे है।
भारत में 25 जगहों पर वैक्सीनेशन के स्टोर के लिए एक दूसरे पारसी आदि गोदरेज ने अपने रेफ्रिजरेटेड यूनिट को सौंप दिया है।
    सोचिए इन पारसियों को भारत की कोई सुविधा नहीं चाहिए यह खुद को कभी अल्पसंख्यक मानते ही नहीं और आज तक एक भी पारसी अल्पसंख्यक कल्याण योजना का फायदा नहीं लेता बल्कि पारसी खुद को अल्पसंख्यक नही बल्कि भारतीय समझते हैं भारत के विकास में अपना योगदान दे रहे हैं भारत की जीडीपी में सबसे ज्यादा योगदान दे रहे हैं भारत को सबसे ज्यादा टैक्स दे रहे हैं और जब भी भारत की मदद करनी होती है तो सबसे आगे पारसी आते हैं। आप कह सकते है कि आधुनिक भारत के निर्माण में पारसी समुदाय का बहुत ही बड़ा योगदान रहा है।
पारसी मंदिर यानी फायर टेंपल - 
    मुंबई के सीएसटी इलाके में घूमते हुए हमें एक पारसी मंदिर नजर आता है। इसके आगे साइन बोर्ड पर फायर हाउस लिखा है। पर क्या आपको पता है अगर आप गैर पारसी हैं तो किसी पारसी के मंदिर में नहीं जा सकते। आप गुरुद्वारा में जा सकते है, मसजिद में जा सकते है, यहूदियों के साइनागॉग में भी जा सकते हैं। पर पारसी मंदिर में नहीं जा सकते। देखिए बोर्ड पर साफ लिखा है कि गैर पारसियों के लिए प्रवेश निषेध है।
     मानेक जी सेठ जी आग्यारी फायर टेंपल मुंबई के सबसे पुराने फायर टेंपल में शुमार है। इसका निर्माण 1733 में सेठ मानेक जी ने करवाया था। यह मुंबई का दूसरा सबसे पुराना फायर टेंपल है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो लामासू देव की मूर्तियां लगी हैं। पारसी में लामासू सुरक्षा के देवता हैं। उनका सिर इंसानों का है जबकि शरीर शेर का है। यानी की हिंदूओं के गणेश जी की तरह वे हाईब्रिड देवता हैं।
     
    वैसे पूरे मुंबई महानगर में कुल 50 फायर टेंपल है। भला नाम फायर टेंपल नाम क्यों। दरअसल पारसी लोग अग्नि की पूजा करते हैं इसलिए उनके मंदिरों को ये नाम दिया गया है। पारसी धर्म में अग्नि को पवित्रतम जीवित व्यक्ति का दर्जा दिया गया है। उनके मंदिरों में उसकी प्राण प्रतिष्ठा उसी तरह की जाती है जिस तरह हिंदू मंदिरों में भगवत मूर्तियों की। यहां पवित्र अग्नि लगातार जला करती है।
देश में महज 57 हजार पारसी - 
    मुंबई में दादर और नवी मुंबई में भी पारसी लोगों के मंदिर हैं। भारत में 57264 पारसी लोग हैं साल 2011 की जनगणना के मुताबिक। पारसी ऐसा धर्म है जो अपनाया नहीं जा सकता। सिर्फ कोई जन्म से ही पारसी हो सकता है। देश में पारसी लोगों की आबादी बढ़ने के बजाय घट रही हैं। हर साल मुंबई में औसतन 800 पारसी लोगों की मृत्यु होती है पर महज 250 नए बच्चों का जन्म होता है। क्योंकि 10 फीसदी महिलाएं और 20 फीसदी पुरुष पारसी शादी नहीं करते।
बड़े उद्योगपति हैं पारसी - 
    पर आपको पता है कि देश के कई बड़े उद्योगपति पारसी हैं। जी हां, रतन टाटा, अदि गोदरेज, बांबे डाइंग समूह के नुसली वाडिया, शापुरजी पालोनजी समूह के साइरस मिस्त्री जैसे देश के बड़े उद्योगपति पारसी समुदाय से आते हैं। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में फिरोजशाह मेहता, दादा भाई नौरोजी, भीखाजी कामा जैसे लोग पारसी थे। हिंदी फिल्मों के जाने माने निर्माता, निर्देशक, लेखक, अभिनेता वितरक अर्देशर ईरानी भी पारसी थी। उन्होंने पहली बोलती फिल्म आलम आरा, पहली रंगीन फिल्म किसान कन्या बनाई थी।
शव बनता गिद्धों का भोजन - 
    पारसी समुदाय में और भी कुछ अजीबो गरीब रिवाज हैं। यहां मृत्यु के बाद शरीर को एक टावर पर रख दिया जाता है। मरने के बाद उनका शरीर गिद्धों का भोजन बन जाता है। मतलब शव को जलाया या दफनाया नहीं जाता है। यह एक पवित्र सिद्धांत पर आधारित है कि मृत्यु के बाद भी आप जीवों के काम आएं। नौरोज पारसी लोगों का प्रमुख त्योहार है।

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