हम दावे के साथ कह सकते है कि, कई लोग जज और मजिस्ट्रेट का सही अंतर तक नहीं जानते होंगे। आज हम आसान शब्दों में आपको बताएंगे की जज और मजिस्ट्रेट में क्या अंतर होता है और इनके काम कैसे अलग अलग हैं?
जज और मजिस्ट्रेट में अंतर समझने के लिए पहले कोर्ट में आने वाले मामले या मसले समझ लेते हैं। कोर्ट में दो तरह के मसले पेश होते हैं :-
- व्यावहारिक मसले
- क्रिमिनल केस मसले
पहला मामला होता है व्यावहारिक, जिन्हे हम दीवानी मामले भी कह देते हैं और दूसरा होता है क्रिमिनल केस यानि की दाण्डिक मामले अक्सर इन्हे फौजदारी मामले भी कह दिया जाता है।
अब जानते हैं कौन किस काम आता है
जो मसले अधिकार, क्षतिपूर्ति, मानहानि, आपसी झगडे या व्यावहारिक तौर से जुड़े होते हैं ऐसे मसलों को व्यावहारिक मसले कह सिविल कोर्ट में भेज दिया जाता है। चालान, तलाक आदि भी सिविल कोर्ट ही देखता है।
वहीं ऐसे मामले जिनमें अपराध के लिए प्रावधान है और जिनमें दंड की मांग की जाती है। वह दाण्डिक मामले कहलाते हैं। ऐसे सारे मसले जिनमे किसी अपराध का शिकार व्यक्ति दोषी को जेल, दंड या मुवावजे की मांग करता है, ऐसे मसले मजिस्ट्रेट देखता है। ऐसे मसलों की जो इसकी सुनवाई करेगा उसे दंडाधिकारी कहा जाएगा।