उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में एक शख्स 38वीं बार दूल्हा बना, बारात दुल्हन के दरवाजे तक भी पहुंची. दूल्हे और बारातियों की घरातियों ने खूब सेवा-सत्कार की. दुल्हन संग फेर हुए, शादी हुई, लेकिन इन सबके बाद भी विशम्भर दयाल मिश्रा को बिना दुल्हन ही वापस लौटना पड़ा. ये 38वीं बार था, जब विशम्भर बिना अपनी दुल्हन लिए अपने घर वापस लौट गए. इससे पहले विशम्भर के बड़े भाई श्यामबिहारी की बारात भी 35 बार वापस लौट चुकी है. दरअसल, मामला कुछ ऐसा है कि ईसानगर के मजरा नरगड़ा में होली के दिन एक ही परिवार के आदमी सालों से दूल्हा बनते हैं. फिर धूम-धड़ाके के साथ रंग-गुलाल की बारिश करते सज-धजकर बारात लेकर पहुंचते हैं और शादी की सारी रस्में की जाती हैं और फिर उसे बिना दुल्हन के विदा कर दिया जाता है.
इस रोचक कहानी की शुरुआत उस समय होती है जब विशम्भर की बारात लेकर एक जत्था नरगड़ा के संतोष अवस्थी के घर पहुंची. जहां घरवालों ने ट्रैक्टर में पहुंचे बारातियों की खूब सेवा की और परम्परा के मुताबिक बारातियों को जनवासे में ठहराया. इसके बाद उन्हें जलपान और नाश्ता कराया गया. द्वारपूजन के बाद शादी की रस्में हुईं. सात फेरों से लेकर हर तरह की रस्में निभाई गईं. लेकिन विशम्भर को नहीं मिली तो उनकी दुल्हन.
35 सालों से चली आ रही रस्म –
विशम्भर इसी प्रथा का हिस्सा हैं. होली से कुछ दिन पहले उनकी पत्नी मोहिनी अपने घर चली जाती हैं. इसके बाद विशम्भर दूल्हा बनकर पूरे जोरों-शोरों से अपनी शादी के लिए पहुंचते हैं. फिर शादी की रस्में होती हैं और फिर बिना पत्नी के वापस आ जाते हैं. इस शादी में वो सबकुछ होता है जो आम शादियों में होता है. सिर्फ नहीं होती तो दुल्हन की विदाई. विशम्भर के पहले उनके बड़े भाई इस रस्म का 35 सालों तक हिस्सा रह चुके हैं।