अजमेर मे रेवन्यु कोर्ट के भ्रष्टाचार का मामला नया नही है। जाने कितने ही सालो से यह खेल चला आ रहा होगा। अबके नोटो के बंटवारे मे कोई विवाद हो गया होगा जिससे ये विस्फोट हो गया। राजस्व मंडल के चेयरमैन और सदस्यो की नियुक्ति भी वजन रखने से ही होती होगी इसी लिए ये लोग जमकर जनता को लूटते रहेते है और सरकार को चूना लगाते रहते है। राजस्व मंडल के सदस्य का मुंह लगा वकिल पैसे लेकर फैसले लिख देता था।राजस्व विभाग के अलावा ऐसा राजस्थान की अनेक प्रसानिक और न्यायिक विभागो मे अभी भी होता है जहां अधिकारीयो के मुंह लगे रीडर वकिल अपनी मर्जी से फैसले लिखकर या लिखे हुये फैसलो मे अपनी मर्जी के बिंदु जुडवाकर या हटवाकर मोटा पैसा कमाते है। अधिकारी इनके सामने बेबस हो जाते है और कुछ हिस्सा वो भी मार लेते है। इनके हाथो ली गयी रिश्वत मे वो खुदको सुरक्षित मानते है मगर रेड पडने पर एक दिन वो भी कानून के हत्थे चढकर जेलो मे सजा काटते है।
राजस्थान के कितने ही एसे प्रसासनिक आफिस है जिनका पुरा काम बीस-बीस साल से वहां जमे बाबू और रीडर देखते है, जो मोटी रकम मिलने पर पचास साल पुराने कागजो मे हेरफेर कर देते है और पैसा न मिलने पर काम को वर्षो तक अटका देते है। बहुत से एसडीएम एडीम कलेक्टर एंवम न्यायाधिक प्राधिकरणो के रीडर अपने अधिकारी से ज्यादा अनुभवी होने के कारण उनके निर्णयो को पीडितो से पैसे लेकर प्रभावित करते है।
दरअसल इस पुरे भ्रष्टाचार के गेम मे सरकार के कई मंत्री, बडे व छोटे पिठासन अधिकारी, रीडर, वकिल और खूद पीडित शामिल रहते है। पीडित स्वयं चलकर अधिकारियो, वकिलो रीडरो को येन-केन प्रकार से काम करवाने का लालच देकर भ्रष्टाचार को बढावा देते है। आपराधिक मामलो मे पीडित किसी होशियार ईमानदार वकिलो के पास जाने की बजाय उन वकिलो के झांसे मे आ जाते है जो ये कहते है कि उनकी जजो, अधिकारियो, न्यायिक प्राधिकरण के सदस्यो से सैटिंग है और वो सो प्रतिशत उनका काम करवा देगे।
प्राय ऐसा देखा जाता है कि पीडित दिन भर उन वकिलो और बाबुओ रीडरो की तलाश मे लगे रहते है जो किसी जज, अधिकारी, न्यायिक प्राधिकरण के भाई, बेटे, बेटी साले, जीजा, मित्र या अन्य रिश्तेदार होते है। ऐसे रीडरो को मामले सुलझाने के नाम पर और वकिलो को सिर्फ खडे होने की एवज मे लाखो रुपये मिलते है। ऐसी पोजिशन मे ईमानदार वकिल कैसे और कब तक टिकेगा। अपने उसूलो पर झूठ का सहारा लिये बिना कब तक डटा रहेगा। पेट भरने के लिए उसे भी आखिर मजबूरी में झूठ बोलना पडेगा और नही बोलेगा तो क्लांईट भाग जायेगा। क्लाईंट की संतुष्टी के लिए मजबूरन झूठे आश्वासन भी देगा क्योकि पीडित को सो प्रतिशत सिर्फ हां मे जवाब चाहिये वो ना सुनने का आदि नही है। फीस उसके लिए कोई मायने नही रखती उसे ईमानदार सच्चा नही, झूठी तसल्ली और झूठे आश्वासन देने वाला वकिल चाहिये।
प्रदेश के न्यायिक और प्रसाशनिक प्राधिकरणो मे बढती दलाली चिंतनिय है जिसे रोकना बहुत आवश्यक है।एसीबी की तरह इन पर भी चौबीस घंठे निगरानी रखने वाली संस्था होनी चाहिए जो ऐसे बाबुओ, रीडरो और दलाली मे लिप्त कुछ वकिलो पर ध्यान रखे वरना ऐक दिन इस देश की न्याय प्रणाली ठप्प पड जायेगी।
(Adv Omendra singh raghav)