यहाँ के महाराजा ने जब स्कूल खोलने के लिए लोगो के पत्थर भी झेले
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यहाँ के महाराजा ने जब स्कूल खोलने के लिए लोगो के पत्थर भी झेले

   बात करीब 107 वर्ष पहले की है जब जोधपुर के महाराजा सर प्रताप सिंह ने न केवल राजपूत समाज के लिए चौपासनी स्कूल बनाने का सपना देखा, बल्कि इस सपने को पूरा करने के लिए लोगों के पत्थर भी झेले। महाराजा साहब के अथक प्रयासों से कुल 5 लाख 91 हजार रुपए में 1914 में स्कूल का भवन बनकर तैयार हुआ। इस स्कूल ने पूरे देश को कई काबिल ऑफिसर, खिलाड़ी, ब्यूरोक्रेट्स, शिक्षाविद् एवं समाजसेवी दिए हैं, जिन्होंने ना केवल स्कूल का बल्कि पूरी दुनिया में अपने देश का नाम रोशन भी किया है।
देश को दिए बेहतरीन स्टूडेंट्स
   चौपासनी स्कूल से निकले छात्रों में परमवीर चक्र विजेता, शौर्य चक्र विजेता, अशोक चक्र विजेता, पद्मश्री पुरस्कार और द्रोणाचार्य सरीखे पुरस्कार प्राप्त करने वाले भी शामिल हैं।
   शहीद मेजर शैतानसिंह, विक्टोरिया क्रॉस विजेता गोविंद सिंह, पद्मभूषण नारायणसिंह माणकलाव, पद्मश्री नारायणसिंह भाटी, नारायण सिंह माणकलाव, नारायणसिंह, पोलो खिलाडी प्रेम सिंह, करणसिंह, मेजर जनरल कल्याण सिंह, जगजीत सिंह, वाइस एयर मार्शल चंदन सिंह, मौसम विभाग के पूर्व डीजी लक्ष्मणसिंह राठौड़, त्रिलोक सिंह, माधोसिंह, मानसिंह सहित कई स्टूडेंट्स हैं जिन्होंने अपनी हिम्मत, ज्ञान और अनुभव के बूते पूरी दुनिया में नाम रोशन किया है।
साफा पहनना जरूरी
   राजपूत समाज का स्कूल होने के कारण यहाँ पर अध्ययनरत छात्रों को साफा पहनना जरूरी था। आज भी यह परंपरा कायम है। हालांकि अब सभी समाजों के बच्चे यहां पढ़ रहे हैं, लेकिन छात्रों के लिए आज भी केसरिया साफा पहनना जरूरी है ताकि उन्हें अपनी विरासत और संस्कृति पर मान हो सके।
आजाद भारत का शिक्षा के लिए पहला आंदोलन जोधपुर में हुआ
    भारत को आजादी मिलने के बाद 1949 में भारत सरकार ने चौपासनी स्कूल का अधिग्रहण कर लिया और इसे मिलिट्री स्कूल में तब्दील कर दिया। यह निर्णय राजपूत समाज को रास नहीं आया और उन्होंने इस निर्णय के विरोध में आंदोलन शुरू कर दिया।
   शिक्षा के लिए आजाद भारत का यह पहला आंदोलन था। 11 दिनों तक स्टूडेंट्स ने भूख हड़ताल की। सभी समाज के लोग छात्रों के साथ साथ हो गए और बहुत बड़ा आंदोलन खड़ा हो गया। जनशक्ति के आगे सरकार को झुकना पड़ा और गजट नोटिफिकेशन निकाल कर स्कूल को अधिग्रहण से मुक्त किया गया।
सैनिकों का भत्ता स्कूल भवन बनाने में लगाया तो हुआ विरोध
    दरअसल, प्रथम विश्व युद्ध में जोधपुर राजघराने की ओर से भाग लेने वाले सैनिकों को 1 पाई प्रतिदिन के हिसाब से एलाउंस मिलना तय हुआ था। सर प्रताप का कहना था कि वो सैनिकों को एलाउंस की राशि नहीं देंगे और इस राशि से राजपूत समाज के लिए एक स्कूल की स्थापना करेंगे। उनके इस निर्णय से कई राजपूत सैनिक नाराज हो गए।
   सैनिकों ने इस निर्णय का भारी विरोध हुआ। एक बार तो उन पर पथराव भी किया गया। इसके बावजूद सर प्रताप अपने मकसद से डिगे नहीं और सैनिकों को एलाउंस के तौर पर मिलने वाले 91 हजार रुपए और इस्टेट की ओर से 5 लाख रुपए मिलाकर स्कूल बनवाकर ही माने।
जोधपुर में हर समाज के लिए खोले स्कूल ताकि सब पढ़ें
    चौपासनी स्कूल बनाने के दौरान सर प्रताप को लगने लगा था कि सिर्फ भवन बनाने से कुछ नहीं होगा जब तक कि बच्चे वहां पढ़ने नहीं आए। उन्हें लगता था कि अगर स्टेट कहेगा तो भी लोग शायद ही अपने बच्चों को यहां पढ़ने भेजे।
    उन्होंने इसके लिए एक ऐसा उपाय किया जिससे जोधपुर शिक्षा के क्षेत्र में काफी आगे बढ़ गया। उन्होंने समाज के विभिन्न वर्गों के हिसाब से स्कूल खोलनी शुरू कर दिए। राजपूत समाज के लिए चौपासनी स्कूल, रावणा राजपूत समाज के लिए उम्मेद स्कूल, माली समाज के लिए सुमेर स्कूल, ओसवाल समाज के लिए सरदार स्कूल, कायस्थ समाज के लिए सर प्रताप स्कूल, ब्राह्मण समाज के लिए सुमेर पुष्टिकर स्कूल, मुस्लिम समाज के लिए मुस्लिम स्कूल (गांधी स्कूल), कुम्हार समाज के लिए महाराजा स्कूल खोली गई जो उनके समाज के लोग ही संचालित करते थे।
    इस कारण हर समाज के बुद्धिजीवियों ने अपने समाज के बच्चों को पढ़ने के लिए जोधपुर भेजना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे जोधपुर शिक्षा का केंद्र बनता गया। दूर-दूर से भी छात्र-छात्राएं आकर अपने-अपने समाज के स्कूल में भर्ती होने लगे।
    इसका लाभ यह हुआ कि राजपूत समाज के बच्चे भी चौपासनी स्कूल में प्रवेश लेने के लिए पहुंचने लगे। हालांकि, धीरे-धीरे सभी स्कूलों में सभी समाजों के बच्चों को प्रवेश मिलने लगे।
सेना में जाने के लिए प्रेरित करने के लिए स्कूल से ही प्रशिक्षण शुरू किया 
   चौपासनी सीनियर सेकेंडरी स्कूल N.C.C छात्रों को प्रशिक्षण प्रदान करता है। इस स्कूल में N.C.C की तीन टुकड़ियाँ हैं। वे हैं: आर्मी विंग, एयरफोर्स विंग और नेवल विंग। 
    'ए' प्रमाण पत्र सेना, नौसेना और वायु सेना के विंग में दिया जाता है तथा आर्मी विंग में सीनियर डिवीज़न की व्यबस्था है जो N.C.C. और सेना प्रभाग 'बी' और 'सी' प्रमाणपत्र के लिए प्रशिक्षण प्रदान करता है, जूनियर डिवीजन में प्रवेश आठवीं और नौवीं कक्षा में दिया जाता है और वरिष्ठ डिवीजन के लिए ग्यारहवीं कक्षा में प्रवेश दिया जाता है।
घुड़सवारी
    चौपासनी सीनियर सेकेंडरी स्कूल स्कूली छात्रों के लिए बहुत मामूली फीस पर हॉर्स राइडिंग की सुविधा प्रदान करता है। हॉर्स राइडिंग शौक, अतिरिक्त गतिविधि के रूप में अच्छी है और युवा छात्रों में रोमांच और उत्साह की भावना पैदा करती है। हर साल यहां से हर खेल में खिलाड़ी नेशनल लेवल तक खेलने जाते है। 

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