कोरोना वायरस से भी ज्यादा खतरनाक बीमारी, जिससे हो गई थी 5 करोड़ लोगों की मौत!
कोरोना वायरस से दुनिया भर में दहशत फैली हुई है। कोरोना वायरस ऐसी पहली बीमारी नहीं है, जिसका डर पूरी दुनिया में देखा जा रहा है बल्कि इससे पहले भी स्पेनिश फ्लू नाम की एक भयंकर बीमारी दुनिया में तहलका मचा चुकी है।
स्पेनिश फ्लू की बीमारी क्या है
अमेरिका में स्पेनिश फ्लू के शुरुआती मामले मार्च 1918 में सामने आए थे। अभी की तरह उस समय दुनिया आपस में दूरसंचार के मामले में इतनी जुड़ी हुई नहीं थी। समुद्री मार्गों से ही एक देश से दूसरे देश आना-जाना होता था। फिर भी यह बीमारी काफी तेजी से फैली।
इस बीमारी का नाम क्यों पड़ा स्पेनिश फ्लू
नाम के अनुसार हर किसी के मन में सवाल आता है कि इसका नाम स्पेनिश फ्लू क्यों है जबकि इस बीमारी की शुरुआत स्पेन में नहीं हुई। असल में पहले विश्वयुद्ध के दौरान स्पेन तटस्थ था इसलिए जब धीरे-धीरे बीमारी वहां तक पहुंची, तो स्पेन ने इस बीमारी की खबर को दबाया नहीं जबकि दूसरे देशों जो विश्वयुद्ध में शामिल थे, उन्होंने इस खबर को दबाए रखा कि उनके यहां बीमारी फैल रही है जिससे कि उनके सैनिकों का मनोबल न टूटे और उन्हें कमजोर न समझा जाए। ऐसे में स्पेन के स्वीकारने के कारण इसे स्पेनिश फ्लू नाम से जाना जाने लगा।
क्या है स्पेनिश फ्लू की थ्योरी
स्पेनिश फ्लू की शुरुआत कहां से हुई, इसको लेकर इतिहासकारों का अलग-अलग विचार है। कुछ का मानना है कि फ्रांस या अमेरिका स्थिति ब्रिटिश आर्मी के बेस से इसकी शुरुआत हुई थी। हाल ही में एक नई थ्योरी के मुताबिक इसके लिए चीन को जिम्मेदार ठहराया गया है।
माना जाता है कि स्पेनिश फ्लू की शुरुआत साल 1917 के आखिरी हिस्से में उत्तरी चीन में हुई। वहां से यह बीमारी पश्चिमी यूरोप में फैली क्योंकि फ्रांस और ब्रिटेन की सरकारों ने मजदूरी के कामों के लिए 1 लाख से ज्यादा चीनी मजदूरों को नौकरी पर रखा था। उन मजदूरों के साथ यह बीमारी यूरोप पहुंची। तुरंत ही यह महामारी अलास्का के सुदूर इलाकों में पहुंच गई। करीब दो सालों तक इसका कहर जारी रहा। ऐसा माना जाता है कि इस बीमारी की शुरुआत सैनिकों से हुई थी। उस समय पहला विश्वयुद्ध चल रहा था। सैनिकों के बंकरों के आसपास गंदगी की वजह से यह महामारी सैनिकों में फैली और जब सैनिकों अपने-अपने देश लौटे तो वहां भी यह बीमारी फैल गई।
करीब 5 करोड़ लोगों की हुई थी मौत
इससे मरने वाले लोगों की संख्या को भी लेकर अलग-अलग अनुमान है। उन अनुमानों के मुताबिक, करीब 4 करोड़ से 5 करोड़ लोगों की इस बीमारी से मौत हुई थी। यानी कि उस समय की 1.7 फीसदी आबादी इसी बीमारी की वजह से मौत के मुंह में समा गई थी।