एक टी टी ई (TTE) सामान्य स्लीपर या ए सी डब्बे में 3 से 5 डब्बों को अकेले चेक कर लेता है क्योंकि सारे स्लीपर या ए सी डब्बे एक दूसरे से जुड़े रहते हैं- एक उपकरण द्वारा जिसे वेस्टिब्यूल कहते हैं। यानी वह एक डब्बे से भी टिकट जांच करना शुरू करता है तो ट्रेन खुल जाने के बाद भी चलती हुई ट्रेन में 4 अन्य डब्बों में जा सकता है।
लेकिन एक जनरल डब्बा जिसे GS (जी एस) कहते हैं में वेस्टिब्यूल नहीं होता है अतः वे एक दूसरे से जुड़े हुए नहीं रहते हैं। अतएव यदि वह एक जनरल डब्बा (GS) से टिकट जांच करना शुरू करता है तो ट्रेन खुल जाने के बाद वह चलती हुई ट्रेन में दूसरे किसी भी डब्बे में नहीं जा सकता है। अब एक जनरल डब्बा में तो वह 150-200 लोगों की भी टिकट जाँच आधा घंटा में सम्पन्न कर लेगा, प्रश्न उसके बाद का है। सुपरफास्ट ट्रेन तो 4-5 घंटे तक निरंतर चलते ही रहती है। फिर 4 घंटे वह एक ही जनरल डब्बे में करेगा क्या?
अतः सामान्यतः जनरल डब्बा में वह स्टेशन पर ही रुकी हुई हालात में चेक कर उतर लेता है या कोई खास दो स्टेशनों के बीच (जो 15-20 मिनट के फासले पर हों) टिकट जाँच कर उतर जाता है।
तथापि यह सत्य है कि बहुत बार हिंसक (बगैर टिकट) यात्री गण के कारण टी टी ई (TTE) अकेले जनरल डब्बा में टिकट चेकिंग से कतराते हैं - खासकर लोकल ट्रेनों में। कई बार ऐसे भी वाकिए देखे गए है जिसमे चलती ट्रेन से TTE को लोगों ने धक्का दे कर नीचे गिरा दिया था। ऐसी घटनाओं के कारण अब 5-6 TTE और RPF जवानों का जत्था जनरल डब्बा में टिकट चेकिंग करता है। ज्यादातर मामलों में देखा गया है की बे टिकट यात्री सूट बूट वाले ही होते है जो रिजर्व्ड डब्बों में यात्रा करते है।
वही टिकट चेकिंग स्टाफ की रिक्तियाँ भी एक कारण है जनरल डिब्बों में TTE की कम तैनाती की वजह। हालाँकि दीनदयालु और अंत्योदय ट्रेनों में जनरल डिब्बों भी आपस मे वेस्टिब्यूल के माध्यम से जुड़े रहते हैं लेकिन ये विशेष ट्रेन हैं जिनमें केवल जनरल डिब्बे ही होते हैं।