News Today Time Group - Digital News Broadcasting - Today Time Group - Latest News Today News Today: Hindi News Boradcasting Today Group - Real-Time News उत्तराखंड में घूमने आई जर्मन लड़की सरस्वती माई कैसे बन गई?
Headline News
Loading...

Ads Area

उत्तराखंड में घूमने आई जर्मन लड़की सरस्वती माई कैसे बन गई?

उत्तराखंड में घूमने आई थी एक जर्मन लड़की, पहाड़ों में रही और सरस्वती माई बन गई.. 
    जहां हम हिन्दू अपने शास्त्रीय विधि विधानों को त्याग कर पश्चिमी देशों की संस्कृति अपनाते जा रहे हैं। वही विदेशों में बड़ी मात्रा में लोगों का ईसाइयत व इस्लामिक विचारधाराओं की सच्चाई सामने आने पर इन मजहबो से मोह भंग होता जा रहा है।
जर्मनी मूल की लड़की सरस्वती माई कैसे बनी 
    दूसरी ओर हमारे धर्मगुरुओं की कृपा से लाखों विदेशी अपना कुल, धर्म व देश छोडकर हिन्दू धर्म में, विभिन्न गुरुओं के माध्यम से अपनी घर वापसी कर एवं दीक्षित होकर भारत में ही रहकर आत्म कल्याण कर रहे हैं। आप जो ये तस्वीर देख रहे हैं ये उत्तराखंड के कालीशिला धाम में रहने वाली एक जर्मनी मूल की सरस्वती माई की है। औद्योगिक क्रान्ति वाले विकसित देश जर्मनी की मूल निवासिनी ने अपना सन्यासी नाम सरस्वती माई रखा है। सरस्वती माई कम से कम तीस सालों से रुद्रप्रयाग जिले की ऊखीमठ के अन्तर्गत रॉऊलैक से 3 किमी पैदल खडी चढाई चढने के बाद पर्वत चोटी पर स्थित कालीशिला नामक शक्ति पीठ में रोजाना साधना करती हैंं।
    बताते हैं कि माई जी जर्मनी के सम्पन्न घर में पैदा हुईं थीं लेकिन अब इनको सन्यास के चलते सांसारिक वस्तुओं के संग्रह से कोई लेना देना नहीं है। ये एक साधारण सी झोपडी में रहती हैं। सरस्वती माई अपने खाने के लिए साग सब्जियां खुद उगाती हैं। ये पूरी गढ़वाली और हिन्दी भाषा को समझती और बोलती हैं। विख्यात पत्रकार श्री क्रान्ति भट्ट जी की टिप्पणी में लिखा गया है कि सरस्वती माई सन 2000 की नन्दा राज यात्रा भी कर चुकी ह़ैं। देवभूमि के कालीमठ क्षेत्र में सरस्वती माई जी के प्रति लोगों की अपार श्रद्धा है। इसी कालीशिला धाम में जर्मनी की सरस्वती माई साधना करती हैं। 
सरस्वती माई जर्मनी से यहां क्यों आई
   कहा जाता है कि एक बार सरस्वती माई जब जर्मनी में थी, तो उन्हें कालीशिला का सपना आया था। इस स्वप्न में क्या हुआ ये भी जानिए। सपने में खुद उन्हें रास्ता भी बताया गया था कि यहां उन्हें इस सांसारिक जीवन से मुक्ति मिलेगी। इसके बाद ही वो जर्मनी से यहां आई। 
कालीशिला देवभूमि की क्या मान्यता है 
    सरस्वती माई कहती हैं कि उन्हें इस जगह पर असीम शांति मिलती है। फिलहाल घर क्या है, वो भूल चुकी हैं और उत्तराखंड की धरा को ही अपना घर बना चुकी हैं। ऐसी महान तपस्विनी को हमारा हृदय से नमन है। अब आप ये भी जानिए कि आखिर कालीशिला देवभूमि की कैसी अद्भुत जगह है। विश्वास है कि मां दुर्गा शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज का संहार करने के लिए कालीशिला में 12 वर्ष की कन्या के रूप में प्रकट हुई थीं। कालीशिला में देवी-देवताओं के 64 यंत्र हैं। मान्यता है कि इस स्थान पर शुंभ-निशुंभ दैत्यों से परेशान देवी-देवताओं ने मां भगवती की तपस्या की थी। तब मां प्रकट हुई। मां ने युद्ध में दोनों दैत्यों का संहार कर दिया।

Post a Comment

0 Comments