Latest News Today: Breaking Digital News in Hindi and English News Today: Your Daily Source for Time-Sensitive Updates Real-Time News Today: Hindi and English Updates at Your Fingertips खम्माघणी का मतलब क्या होता है?
Headline News
Loading...

Ads Area

खम्माघणी का मतलब क्या होता है?

  खम्माघणी में पहला शब्द है खम्मा जिसका अर्थ है क्षमा, माफ़ी। दूसरा शब्द है घणी जिसका अर्थ है बहुत या ज्यादा… राजस्थान, सौराष्ट्र का कुछ भाग में राजपूतो में कुछ बोलने से पहले खम्माघणी या खम्मा शब्द का उपयोग होता है। इसका मतलब है कुछ बोलने से पहले मै आप से क्षमा मांगता हु ये शब्द राजपूतो को सम्मान देने के लिए एवं कुछ जातियों द्वारा राजपूत को अभिवादन के रूप में भी किया जाता रहा है, जैसे राजस्थान का "ढोली" समाज ढोल बजाने से पहले "घणी घणी खम्मा अन्नदाता होकम" कह कर अपनी बात रखते है। 
   राजपूतो में आज भी छोटो को आप कहकर पुकारा जाता है शायद ही ऐसा कोई क्षेत्र हो जहा राजपूत आपस में "तू तकारे" में बात करे चाहे एक दूसरे को न भी जानते हो तब भी राजपूत आपस में बड़े छोटो से आप लगा कर ही बात करेंगे। 
    बहुतो का मानना है खम्माघणी कहने से राजपूतो में अभिजात्य वर्ग, यथा राजा व जागीरदारों ने आम राजपूत से अपने आप को प्रथक प्रदर्शित करने लिए किया था पर अगर आप किसी को खम्मा या खम्मा घणी करते हो तो सामने वाला भी आपको घणी खम्मा कह कर आपका अभिवादन करेगा चाहे वह राजा हो या रंक। 
   राजपूतो में खम्मा घणी का सबसे ज्यादा उपयोग जनाना में या उनके लिए होता है घर की औरतोँ उनसे उम्र में छोटे पुरुष भतीजे, देवर, भाई आदि कुछ बोलने से पहले खम्मा घणी कह कर पुकारते है। 
    कुछ का मानना है की खम्मा घणी शब्द कुछ दशको पहले आया है जबकि आज से कई सदियों पहले भी यह उपयोग में आता था आज भी गांव के किसी बड़े बुजुर्ग को पूछेंगे तो वह यही कहेगे की उनके दादा को भी वो खम्मा घणी या जय माता जी किया करते थे। 
   खम्मा घणी शब्द में छोटे-बड़े का लोभ नही होता राजस्थान में एक परम्परा है जब राजपूत जनाना में नाच गान होता है तो नाच के बाद औरते सबसे पहले ढोली जी या ढोलन जी को दूर से झुक कर प्रणाम करती है, इसका ये मतलब नही की कौन बड़ा कौन छोटा।
    खम्माघणी में पहला शब्द है खम्मा जिसका अर्थ है क्षमा, माफ़ी। दूसरा शब्द है घणी जिसका अर्थ है बहुत या ज्यादा अगर कुछ बोलने से पहले सामने वाला माफ़ी मांगे तोह इससे सामने वाले के संस्कार झलकेंगे, आदर का सम्मान होगा। 
   राजपूतो में क्षेत्र के हिसाब से अभिवादन है जैसे पंजाब, जम्मू की तरफ "जयदेव" तो पाकिस्तान में और राजस्थान सीमावर्ती में "मुजरो सा" वही गुजरात, काठियावाड़ में जय माता रि/जी, कही जय श्री राम, कही जय मुरलीधर जी की, कही जय गोपीनाथ जी, जय माता री, जय चार भुजा की, जय एक लिंग जी, जय श्री, जय श्री कृष्णा आदि का उद्बोधन किया जाता है। 
   ये बात जरूर है की देवी देवताओ के नाम से अभिवादन करने से इष्ट प्रबल होता है आपने "कोस कोस पर बदले पानी चार कोस पर वाणी" यह कहावत तो सुन ही रखी होगी। 

Post a Comment

0 Comments