जैसे ही विमान ने उड़ान पथ पर चलना शुरु किया, अधिकतर लोग विमान से कूद गये या गिर गये। सी-१७ ग्लोबमास्टर पर बाहर से पकड़ने लायक कुछ भी नहीं है और इसके चार जेट इंजनों की ध्वनि कानों पर पर्याप्त सुरक्षा नहीं पहनने वालों के कान फाड़ देती है।
फिर भी कुछ आशाहीन लोगों ने विमान के बाहर यात्रा करने का प्रयास किया। वे विमान की नाक और (नीचे के चित्र में दिखाये गये) अवतरण पहियों के दरवाजों पर चढ़ गये।
विमान के उड़ते ही जब ये किवाड़ बंद हुए तो ऐसे सभी लोग गिर कर मर गये। जो एक-दो लोग पहियों के कक्ष में चढ़ने में सफल हो गये थे, वे कक्ष में वापस घुसते महाकाय पहियों से कुचल कर मर गये और यदि उन्हें किसी तरह पहियों के बीच सिकुड़ कर बैठने की थोड़ी जगह मिल भी गयी होगी तो (सागरमाथा/ऐवरेस्ट शिखर से भी उत्तुंग) उड्डयन की उन ऊंचाईयों की मर्मभेदी ठंड के कारण अल्पताप से ३० मिनट से भी समय में उनकी मृत्यु हो गयी होगी।
क्या इन लोगों ने पूरी उड़ान के दौरान अवतरण पहियों के खुले रहने का विश्वास किया था, या क्या इन्हें पता था कि ३३ हजार फीट ऊंचाई के वातावरण में कोई मानव शरीर जीवित नहीं बच सकता, या फिर सब समझ कर भी उन्होंने तालिबान द्वारा पकड़े जाने की जगह विमान पर एक लगभग निश्चित और भयावह मृत्यु का जुआ खेला - किंतु इनमें से हर बात हृदय-विदारक है।
नीचे का धुंधला चित्र एक युवा द्वारा खींचा गया था जो विमान के उड़ान भरने से ठीक पहले अवतरण पहियों के दरवाजे पर खड़ा था। पूरी फिल्म में आप उन्हें मुस्कुराते हुए और उत्तेजना में भरकर भीड़ की ओर हाथ लहराते हुए देख सकते हैं। अतः मुझे लगता है कि उन्हें अवश्य यह विश्वास होगा कि वे इस सवारी से जीवित बच जायेंगे और तालिबान से सुरक्षित भाग जायेंगे।