भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा को सालबेग की मजार पर क्यों रोका जाता है?
Headline News
Loading...

Ads Area

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा को सालबेग की मजार पर क्यों रोका जाता है?

    सालबेग, 17वीं शताब्दी की शुरूआत में मुगलिया शासन के एक सैनिक थे, जिन्हें भगवान जगन्नाथ का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है। सालबेग की माता ब्राह्मण थीं, जबकि पिता मुस्लिम थे। उनके पिता मुगल सेना में सूबेदार थे। इसलिए सालबेग भी मुगल सेना में भर्ती हो गए थे। एक बार मुगल सेना की तरफ से लड़ते हुए सालबेग बुरी तरह से घायल हो गए थे। तमाम इलाज के बावजूद उनका घाव सही नहीं हो रहा था। इस पर उनकी मां ने भगवान जगन्नाथ की पूजा की और उनसे भी प्रभु की शरण में जाने को कहा। मां की बात मानकर सालबेग ने भगवान जगन्नाथ की प्रार्थना शुरू कर दी। उनकी पूजा से खुश होकर जल्द ही भगवान जगन्नाथ ने सालबेग को सपने में दर्शन दिया। अगले दिन जब उनकी आंख खुली तो शरीर के सारे घाव सही हो चुके थे।
   इसके बाद सालबेग ने मंदिर में जा कर भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें प्रवेश नहीं दिया गया क्योंकि जगन्नाथ पुरी नें गैर हिन्दू का प्रवेश वर्जित है। 
   इसके बाद सालबेग मंदिर के बाहर ही बैठकर भगवान की अराधना में लीन हो गए। इस दौरान उन्होंने भगवान जगन्नाथ पर कई भक्ति गीत व कविताएं लिखीं। उड़ीया भाषा में लिखे उनके गीत काफी प्रसिद्ध हुए, बावजूद उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं मिला। इस पर सालबेग ने एक बार कहा था कि अगर उनकी भक्ति सच्ची है तो उनके मरने के बाद भगवान जगन्नाथ खुद उनको दर्शन देने के लिए आएंगे। 
   सालबेग की मौत के बाद उन्हें जगन्नाथ मंदिर और गुंडिचा मंदिर के बीच ग्रांड रोड के करीब दफना दिया गया।ऐसी मान्यता है कि सालबेग की मृत्यु के बाद जब रथ यात्रा निकली तो रथ के पहिये मजार के पास जाकर थम गए। लोगों ने काफी कोशिश की, लेकिन रथ मजार के सामने से नहीं हिला। तब एक व्यक्ति ने तत्कालीन ओडिशा के राजा से कहा कि वह भगवान के भक्त सालबेग का जयकारा लगवाएं। उस व्यक्ति की सलाह मानकर जैसे ही सालबेग का जयघोष हुआ, रथ अपने आप चल पड़ा। ऐसी मान्यता है कि तभी से भगवान जगन्नाथ की इच्छा अनुरूप उनकी सालाना आयोजित होने वाली तीन किलोमीटर लंबी नगर रथ यात्रा को कुछ देर के लिए उनके भक्त सालबेग की मजार पर रोका जाता है।

Post a Comment

0 Comments