प्राचीन रोमन कैलेण्डर में मात्र 10 माह होते थे और वर्ष का शुभारम्भ 1 मार्च से होता था. बहुत समय बाद 713 ईस्वी पूर्व के करीब इसमें जनवरी तथा फरवरी माह जोड़े गए, सर्वप्रथम 153 ईस्वी पूर्व में 1 जनवरी को वर्ष का शुभारम्भ माना गया एवं 45 ईस्वी पूर्व में जब रोम के तानाशाह जूलियस सीजर द्वारा जूलियन कैलेण्डर का शुभारम्भ हुआ, तो यह सिलसिला बरकरार रखा गया.
ऐसा करने के लिए जूलियस सीजर को पिछला साल, यानि, ईसा पूर्व 46 ई. को 445 दिनों का करना पड़ा था. 1 जनवरी को नववर्ष मनाने का चलन 1582 ईस्वी के ग्रेगेरियन कैलेंडर के आरम्भ के बाद हुआ.
दुनिया भर में प्रचलित ग्रेगेरियन कैलेंडर को पोप ग्रेगरी अष्टम ने 1582 में तैयार किया था. ग्रेगरी ने इसमें लीप ईयर का प्रावधान भी किया था. ईसाईयों का एक अन्य पंथ ईस्टर्न आर्थोडॉक्स चर्च रोमन कैलेंडर को मानता है. इस कैलेंडर के अनुसार नया साल 14 जनवरी को मनाया जाता है..यही वजह है कि आर्थोडॉक्स चर्च को मानने वाले देशों रूस, जार्जिया, येरुशलम और सर्बिया में नया साल 14 जनवरी को मनाया जाता है.
रोम का सबसे पुराना कैलेंडर वहां के राजा न्यूमा पोंपिलियस के समय का माना जाता है..यह राजा ईसा पूर्व सातवीं शताब्दी में था..आज विश्वभर में जो कैलेंडर प्रयोग में लाया जाता है. उसका आधार रोमन सम्राट जूलियस सीजर का ईसा पूर्व पहली शताब्दी में बनाया कैलेंडर ही है. जूलियस सीजर ने कैलेंडर को सही बनाने में यूनानी ज्योतिषी सोसिजिनीस की सहायता ली थी. इस नए कैलेंडर की शुरुआत जनवरी से मानी गई है. इसे ईसा के जन्म से छियालीस वर्ष पूर्व लागू किया गया था. जूलियस सीजर के कैलेंडर को ईसाई धर्म मानने वाले सभी देशों ने स्वीकार किया.
उन्होंने वर्षों की गिनती ईसा के जन्म से की..जन्म के पूर्व के वर्ष बी.सी. (बिफोर क्राइस्ट) कहलाए और (बाद के) ए.डी. अर्थात "एनो डोमिनि" (Anno Domini) जो कि दो लैटिन शब्दों से मिलकर बना है. जहाँ पर AD लिखा होता है उसका मतलब "ईसा के जन्म के वर्ष" से होता है. A.D. का अर्थ लैटिन भाषा में अर्थ "हमारा ईश्वर का वर्ष" होता है. जन्म पूर्व के वर्षों की गिनती पीछे को आती है, जन्म के बाद के वर्षों की गिनती आगे को बढ़ती है. सौ वर्षों की एक शताब्दी होती है.
कुछ लोगों अनुसार सबसे पहले रोमन सम्राट रोम्युलस ने जो कैलेंडर बनवाया था वह 10 माह का था. बाद में सम्राट पोम्पीलस ने इस कैलेंडर में जनवरी और फरवरी माह को जोड़ा. इस कैलेंडर में बारहवां महीना फरवरी था. कहते हैं कि जब बाद में जुलियस सीजर सिंहासन पर बैठा तो उसने जनवरी माह को ही वर्ष का पहला महीना घोषित कर दिया.
इस कैलेंडर में पांचवां महीने का नाम 'क्विटिलस' था..इसी महीने में जुलियस सीजर का जन्म हुआ था. अत: 'क्विटिलस' का नाम बदल कर जुला रख दिया गया. यह जुला ही आगे चलकर जुलाई हो गया. जुलियस सीजर के बाद 37 ईस्वी पूर्व आक्टेबियन रोम साम्राज्य का सम्राट बना. उसके महान कार्यों को देखते हुए उसे 'इंपेरेटर' तथा 'ऑगस्टस' की उपाधि प्रदान की गई. उस काल में भारत में विक्रमादित्य की उपाधी प्रदान की जाती थी.
आक्टेबियन के समय तक वर्ष के आठवें महीना का नाम 'सैबिस्टालिस' था..सम्राट के आदेश पर इसे बदलकर सम्राट 'ऑगस्टस आक्टेवियन' के नाम पर ऑगस्टस रख दिया गया. यही ऑगस्टस बाद में बिगड़कर अगस्त हो गया..उस काल में सातवें माह में 31 और आठवें माह में 30 दिन होते हैं. चूंकि सातवां माह जुलियस सीजर के नाम पर जुलाई था और उसके माह के दिन ऑगस्टस माह के दिन से ज्यादा थे तो यह बात ऑगस्टस राजा को पसंद नहीं आई. अत: उस समय के फरवरी के 29 दिनों में से एक दिन काटकर अगस्त में जोड़ दिया गया और इस तरह अगस्त 31 दिन का हो गया. इससे स्पष्ट है कि अंग्रेजी कैलेंडर का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है.
इस कैलेंडर में कई बार सुधार किए गए पहली बार इसमें सुधार पोप ग्रेगरी तेरहवें के काल में 2 मार्च, 1582 में उनके आदेश पर हुआ..चूंकि यह पोप ग्रेगरी ने सुधार कराया था इसलिए इसका नाम ग्रेगेरियन कैलेंडर रखा गया. फिर सन 1752 में इसे पुन: संशोधित किया गया तब सितंबर 1752 में 2 तारीख के बाद सीधे 14 तारीख का प्रावधान कर संतुलित किया गया. अर्थात सितंबर 1752 में मात्र 19 दिन ही थे.. तब से ही इसके सुधरे रूप को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली.
इस कैलेण्डर को शुरुआत में पुर्तगाल, जर्मनी, स्पेन तथा इटली में अपनाया गया..सन 1700 में स्वीडन और डेनमार्क में लागू किया गया. 1752 में इंग्लैण्ड और संयुक्त राज्य अमेरिका ने, 1873 में जापान और 1911 में इसे चीन ने अपनाया. इसी बीच इंग्लैण्ड के सभी उपनिवेशों और अमेरिकी देशों में यही कैलेंडर अपनाया गया..भारत में इसका प्रचलन अंग्रेजी शासन के दौरान हुआ.
ग्रेगेरियन कैलेंडर कभी विक्रम संवत से प्रेरित कैलेंडर था:-
विक्रम संवत 57 ईस्वी पूर्व आरम्भ होता है. इसका प्रचलन उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने प्रारंभ किया था. इस कैलेंडर को देखकर ही दुनियाभर के कैलेंडर बने थे. बारह महीने का एक वर्ष और सात दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से ही शुरू हुआ. महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है. यह बारह राशियां बारह सौर मास हैं. जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है..पूर्णिमा के दिन, चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है,उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है.
इसी कैलेंडर को रोमन, अरब और यूनानियों ने अपनाया था. बाद में अपने स्थानीय समय और मान्यता के अनुसार लोगों ने इसमें फेरबदल कर दिया.
पहले पृथ्वी के समय का केंद्र उज्जैन हुआ करता था. विश्व के अधिकांश देशों में कालचक्र को सात-सात दिनों में बांटने की प्रथा भारत से ही प्रेरित है..बाद में इसे लोगों ने अपनी अपनी मान्यताओं से जोड़ लिया. भारत में सप्ताह के सात दिनों के नाम ग्रहों के नाम एवं उनके प्रभाव के आधार पर रखे गए. ये हैं- रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार तथा शनिवार..सूर्य को आदित्य भी कहते हैं, इससे रविवार को आदित्यवार भी कहते थे, जो बाद में अपभ्रंश होकर इतवार हो गया.
ईसाई मत के अनुसार ईश्वर ने छह दिनों तक सृष्टि की रचना की और सातवें दिन आराम किया. दरअसल, यूरोप जैसे ठंडे देशों में सूरज कभी-कभी निकलता है और जिस दिन सूरज निकलता था उसे 'सन डे' अर्थात सूरज का दिन कहते थे और धूप निकलने की खुशी में सब लोग मौज-मस्ती करते थे..बाद में आराम के दिन का नाम 'सन डे' रख दिया गया.
ग्रेगेरियन कैलेंडर में जेनस देवता के नाम पर जनवरी माह का नाम पर पड़ा..जेनस देवता के 2 मुंह हैं एक वृद्ध जो कि भूतकाल का प्रतीक हैं और युवा जो कि भविष्य का प्रतीक हैं. जबकि हमारे धर्मग्रंथो में गणेश जी और अग्नि देवता के 2 मुख अतिप्राचीन समय से बताए गए हैं और गणेश सभी कार्यों के शुभारंभ के देवता.
अंग्रेजी कैलेंडर को बनाने में कोई खगोलीय गणना नहीं की गई बल्कि सीधे से भारतीय कैलेंडर को ही कापी कर उसमें बदलाव किए जाते रहे. दुनिया में सबसे पहले तारों, ग्रहों, नक्षत्रों आदि को समझने का सफल प्रयास भारत में ही हुआ था, तारों, ग्रहों, नक्षत्रों, चांद, सूरज आदि की गति को समझने के बाद भारत के महान खगोल शास्त्रीयों ने भारतीय कलेंडर विक्रम संवत को तैयार किया. लेकिन यह कैलेंडर इतना अधिक व्यापक था कि इसे समझना कठिन था, क्योंकि इसमें चंद्र की गतियों के अलवा सूर्य की गति और नक्षत्र की गति का भी ध्यान रखा गया था. इसीलिए तो सूर्यमास, चंद्रमास और नक्षत्र मास तीनों ही इसमें शामिल है.
लेकिन पश्चिम के अल्पज्ञानी इसे समझ नहीं पाए..इसी के आधार पर अलग अलग देशों के सम्राट और खगोलशास्त्री इसी के आधार पर अपने अपने कैलेण्डर बनाने का प्रयास करते रहे और जो-जो कैलेंडर बने वह सभी के सामने है. भारतीय कैलेंडर में चंद्रमास, सूर्यमास और नक्षत्र मास तीनों की तरह के मास के अनुसार माह के नाम निर्धारित कर रखे हैं.
इसमें चंद्रमास का अधिक महत्व है. पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जिस भी नक्षत्र में भ्रमण कर रहा होता है उस नक्षत्र पर आधारित चंद्रमास के नाम रखे गए हैं..जैसे चैत्र माह का नाम चित्रा नक्षत्र पर आधारित है इस माह में दो नक्षत्र आसमान में भ्रमण कर रहे होते हैं. सौरमास का अर्थ यह कि जिस राशि में सूर्य भ्रमण कर रहा होता है उस राशि के नाम पर माह का नाम निर्धारित है. 12 राशियां अर्थात सूर्य मास के बारह माह होते हैं..सूर्य एक राशि में 30 दिन तक रहता है.
चंद्रमास के नाम:-
चैत्र:- चित्रा, स्वाति
वैशाख:- विशाखा, अनुराधा
ज्येष्ठ:- जेष्ठा, मूल
आषाढ़:- पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़, सतभिषा
श्रावण:- श्रवण, धनिष्ठा
भाद्रपद:- पूर्वाभाद्र, उत्तरभाद्र
आश्विन:- अश्विन, रेवती, भरणी
कार्तिक:- कृतिका, रोहिणी
मार्गशीर्ष:- मृगशिरा, उत्तरा
पौष:- पुनर्वसु, पुष्य
माघ:- मघा, अश्लेशा
फाल्गुन:- पूर्वाफाल्गुनी, उत्तरफाल्गुनी, हस्त
गर्व कीजिये हमारे पूर्वजों पर उनकी गणनाएं वैज्ञानिक और पूर्णतः सही थी. जिसका एक साधारण सा उदाहरण हैं कि नासा के अरबों रुपये के सेटेलाइट और हमारा 50 रुपये का पंचांग ग्रहण का समय एक ही बताते हैं.