शाहजहाँ की अर्थी को किन्नरों ने कंधा क्यों दिया था?
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शाहजहाँ की अर्थी को किन्नरों ने कंधा क्यों दिया था?

     1658 ई. में औरंगजेब ने शाहजहाँ को आगरा के किले में नजरबंद कर सत्ता अपने हाथ में ले ली थी। जहाँ 8 वर्ष बिताने के बाद 1666 ई. में उसकी मृत्यु हो गयी। इन 8 वर्षों तक शाहजहां की पुत्री जहाँआरा ने अपने पिता की देखभाल की और राजमहल से पूरी तरह अलग हो गयी।
    शाहजहाँ की मृत्यु के बाद ही वह सार्वजनिक जीवन में वापस आ सकी। उसने पिता-पुत्र के बीच सुलह कराने का हर मुमकीन प्रयास किया परन्तु वह असफल रही। इन 8 वर्षों में औरंगजेब एक भी बार अपने पिता से मिलने नहीं गया।
    मृत्यु के बाद भी उसने अपने पिता के जनाजे को कांधा नहीं दिया। शाहजहां की अर्थी नौकरों और हिजड़ों से उठवाई गयी। इसका कारण यही रहा कि 7 पुत्रों में से 3 की जन्म से कुछ ही महीनों और वर्षों में मृत्यु हो गई थी और बाकी के चारों में शाहजहाँ की राजगद्दी के लिए युद्ध हुआ जिसमें सिर्फ छल कपट से औरंगजेब ही शाहजहाँ को आगरा के महल में कैद करके सिंहासन पर बैठा।
    शाह जहाँ पांचवे मुग़ल शहंशाह था। शाह जहाँ अपनी न्यायप्रियता और वैभवविलास के कारण अपने काल में बड़े लोकप्रिय रहे। किन्तु इतिहास में उनका नाम केवल इस कारण नहीं लिया जाता। शाहजहाँ का नाम एक ऐसे आशिक के तौर पर लिया जाता है जिसने अपनी बेग़म मुमताज़ बेगम के लिये विश्व की सबसे ख़ूबसूरत इमारत ताज महल बनाने का यत्न किया।
     शाहजहाँ मुगल वंश जहाँगीर का पुत्र और अकबर का पोता था शाहजहाँ का जन्म पाकिस्तान के लाहौर में 5 जनवरी 1592 ई0 में हुआ था और मृत्यु 22 जनवरी 1666 ई0 में आगरा फोर्ट में हुई थी। शाहजहाँ का विवाह आसफ खां की पुत्री अर्जुमन्द बानो बेगम से हुआ। जिसे शाहजहाँ ने मलिका-ए-जमानी की उपाधि प्रदान की। जो आगे चलकर मुमताज महल के नाम से जानी गई। मुमताज की ही याद में शाहजहाँ ने एक अलीशान महल यमुना नदी के किनारे निर्माण करवाया। जो अब 7वें अजूबें ताजमहल के नाम से जाना जाता है।
    फरवरी 1628 ई0 में शाहजहाँ राजगद्दी पर बैठा। गद्दी पर बैठते ही शाहजहाँ 1632 ई0 में पुर्तगालियों के प्रभाव को समाप्त कर किया। ऐसे कई युद्धों को अंजाम देने वाले शाहजहाँ को अपने बेटों औरंगजेब, दारा शिकोहा, शाहशुजा, मुराद बख्श, सुल्तान उम्मीद बख्श, सुल्तान लुफ्ताल्ला और सुल्तान दौलत अफजा 7 पुत्रों में से किसी का भी कन्धा नसीब नहीं हुआ।
    शाहजहाँ की अर्थी को कन्धा उसके साधारण नौकरों और किन्नरों ने दिया। इसका कारण यही रहा कि 7 पुत्रों में से 3 की जन्म से कुछ ही महीनों और वर्षों में मृत्यु हो गई थी और बाकी के चारों में शाहजहाँ की राजगद्दी के लिए युद्ध हुआ जिसमें सिर्फ छल कपट से औरंगजेब ही शाहजहाँ को आगरा के महल में कैद करके सिंहासन पर बैठा।
क्या शाहजहां ने 14 शादियां की थी ?
    14 को छोड़ो, उसके हरम की औरतों की गिनती नहीं थी। जिस शाहजहाँ को मुमताज के प्यार की याद में ताजमहल बनवा देने का नाम देकर बुलंदियों पर पहुंचा दिया गया, उसी शाहजहाँ ने अपनी ऐय्याशी के लिये अपनी खुद की बेटी को भी हरम में लाने से नहीं बख्शा!
   शाहजहाँ का दिल उसके सूबेदार की बेगम मुमताज पर आ गया, तो उसने उसे उठवा कर अपनी बेगम बना लिया। उसने सूबेदार के विरोध करने पर उसका सर कलम करा दिया।
    मुमताज गजब की खूबसूरत महिला थी। अपनी 14वीं सन्तान को जन्म देते समय मुमताज की मृत्यु हो गई।तब तक मुमताज और शाहजहाँ की बेटी "जहाँआरा" जवान हो चुकी थी। वह मुमताज की हमशक्ल थी। उसके सौंदर्य पर रीझ कर शाहजहाँ ने अपनी बेटी को ही हरम में शामिल कर लिया।
   लोगों का विरोध होने पर उसने मुल्ला मौल्वियों से कहला दिया कि पेड़ लगाने वाले को उसका "फल" खाने का पूरा हक है? तो 14 शादियों की बात छोडिए! शाहजहाँ को जहाँ भी, जो भी स्त्री भा गई, समझो वो उसके हरम में आ गई!

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