रानी की वाव के अंदर बनी है 30 किलोमीटर लंबी खुफिया सुरंग, पुराने जमाने में राजा-महाराजा अक्सर अपने राज्य में जगह-जगह कुआं खुदवाते रहते थे, ताकि पानी की कमी न हो। भारत में तो ऐसे हजारों कुएं हैं, जो सैकड़ों साल पुराने हैं और कुछ तो हजार साल भी। एक ऐसे ही कुएं के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं, जिसे 'रानी की बावड़ी' कहा जाता है।
दरअसल, बावड़ी का मतलब सीढ़ीदार कुआं होता है। 'रानी की बावड़ी' का इतिहास 900 साल से भी ज्यादा पुराना है और यहां भारी संख्या में पर्यटक घूमने के लिए आते हैं। बता दें कि साल 2014 में यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत स्थल घोषित किया था। हमारे देश में प्रचलित 100 रूपये के नोट पर भी इसी रानी की वाव का चित्र भारत सरकार द्वारा अंकित किया गया है।
गुजरात के पाटण में स्थित इस प्रसिद्ध बावड़ी को "रानी की वाव" भी कहा जाता है। कहते हैं कि रानी की वाव (बावड़ी) का निर्माण 1063 ईस्वी में सोलंकी राजवंश के राजा भीमदेव प्रथम की स्मृति में उनकी पत्नी रानी उदयामति ने करवाया था। रानी उदयमति जूनागढ़ के चूड़ासमा शासक रा खेंगार की पुत्री थीं।
रानी की वाव 64 मीटर लंबा, 20 मीटर चौड़ा और 27 मीटर गहरा है। यह भारत में अपनी तरह का सबसे अनोखा वाव है। इसकी दीवारों और स्तंभों पर बहुत सी कलाकृतियां और मूर्तियों की शानदार नक्काशी की गई है। इनमें से अधिकांश नक्काशियां भगवान राम, वामन, नरसिम्हा, महिषासुरमर्दिनी, कल्कि आदि जैसे अवतारों के विभिन्न रूपों में भगवान विष्णु को समर्पित हैं।
सात मंजिला यह वाव मारू-गुर्जर वास्तु शैली का साक्ष्य है। यह करीब सात शताब्दी तक सरस्वती नदी के लापता होने के बाद गाद में दबी हुई थी। इसे भारतीय पुरातत्व विभाग ने फिर से खोजा और साफ-सफाई करवाई। अब यहां बड़ी संख्या में लोग घूमने के लिए भी आते हैं।
कहते हैं कि इस विश्वप्रसिद्ध सीढ़ीनुमा बावड़ी के नीचे एक छोटा सा गेट भी है, जिसके अंदर करीब 30 किलोमीटर लंबी सुरंग बनी हुई है। यह सुरंग पाटण के सिद्धपुर में जाकर खुलती है।
ऐसा माना जाता है कि पहले इस खुफिया सुरंग का इस्तेमाल राजा और उसका परिवार युद्ध या फिर किसी कठिन परिस्थिति में करते थे। फिलहाल यह सुरंग पत्थररों और कीचड़ों की वजह से बंद है।