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जिसकी हर गोली पर दुश्मन का नाम लिखा है

   डोगरा रेजीमेंट भारतीय सेना का एक सैन्य-दल है। डोगरा रेजिमेंट का मुख्यालय अयोध्या उत्तर प्रदेश में स्थित है, जिसकी हर गोली पर दुश्मन का नाम लिखा है, जिसकी वर्दी, जिसका ध्वज विशेष है. जिसके पास ज्वाला माता की शक्ति है, और जिसका इतिहास वीरता से भरा है. ये कहानी 200 साल पुरानी रेजिमेंट डोगरा की है.
   इस रेजिमेंट का युद्धघोष ज्वाला माता की जय है. इनकी वर्दी खास है. आज आपकी मुलाकात भारतीय सेना के 'हिमालय पुत्र' से होने जा रही है. आज आप उस डोगरा रेजिमेंट की कहानी पढ़ रहे हैं जिसका हौसला हिमालय से ऊंचा है, जिसके इरादे चट्टानों से भी मजबूत हैं. वर्दी जिसकी शान ही नहीं पहचान भी है.
    हिमाचल के राजघरानों की फौज के झंडे आज भी डोगरा रेजिमेंट के हिस्से डोगरा रेजीमेंट के ध्वज पर अंग्रेजी राज के दौरान ब्रिटिश हुकूमत का ताज होता था. भारत के आजाद होने के बाद भारतीय सेना का पुनर्गठन हुआ और डोगरा रेजिमेंट भारतीय सेना का हिस्सा बन गई.
   इसमें कुछ नए हिस्से भी शामिल किए गए. ब्रिटिश सेना की डोगरा पल्टनों के अलावा हिमाचल प्रदेश के मंडी, सुकेत, सिरमौर और चंबा के राजाओं की सेनाओं को डोगरा रेजीमेंट में मिला दिया गया. उस दौरान डोगरा रेजीमेंट के ध्वज पर कौन सा चिन्ह होगा? इस बात पर लंबा विवाद और रिसर्च हुआ.
    अंत में दो चिन्हों के बीच मुक़ाबला हुआ. पहला कांगड़ा का किला जिसे भारत के सबसे पुराने किलों में से एक माना जाता है. इस किले को जीतने के लिए अकबर को भी दो पीढ़ी तक कोशिश करनी पड़ी थी और ये आज भी डोगरा राजवंश का गौरव है. 
    दूसरा था मलाया का बाघ, जो दूसरे विश्वयुद्ध में बर्मा के मोर्चे पर डोगरा सैनिकों के शौर्य की याद दिलाता था. सेना में परंपराएं बनी रहती हैं. रेजिमेंट में शामिल हिमाचल के राजघरानों की फौज के झंडे आज भी डोगरा रेजिमेंट के हिस्से हैं. लेकिन डोगरा रेजिमेंट का सैनिक बनने के लिए एक डोगरा नौजवान को बहुत कड़ी मेहनत करनी होती है.
न होते डोगरा तो न बनता बांगलादेश
    सात दिसंबर 1971 को जब भारत पाक युद्ध के बाद पाकिस्तान ने सरेंडर किया तो अंग्रेजी के एक बड़े अखबार का शीर्षक था कि "पूर्व में पाकिस्तानी सेना के प्रतिरोध का पूरी तरह से विफल हो जाना इस युद्ध की सबसे अनोखी दास्ताँ हैं।"
    बताया जाता है कि सुआडीह नाम के उस गाँव में जहाँ पाकिस्तानी सेना सर्वाधिक शक्तिशाली थी 9 डोगरा रेजिमेंट के जवानों को लगाया गया था जिन्होंने बहुत कम समय में पाकिस्तानी सेना को वहां से खदेड़ दिया जिसका नतीजा यह हुआ कि भारतीय सेना के लिए आगे के रास्ते खुल गए और सेना ने पूर्वी पाकिस्तान से बांग्लादेश को मुक्त कराने में सफलता अर्जित कर ली।
    बाद में युद्ध ख़त्म होने के बाद बटालियन को इस बड़ी सफलता के लिए युद्ध पदक भी दिया गया |सिर्फ इतना ही नहीं 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान आपरेशन विजय के तहत टाइगर हिल मिशन पर पांचवी डोगरा बटालियन के जवानों को ही लगाया गया था जो पूरी तरह से सफल रहा.
    एक सितम्बर 2001 के बाद से अब तक काश्मीर में डोगरा जवानों की वीरता को देखते हुए उनकी छह बटालियन तैनात की गई है, यह भी काबिलेगौर हैं कि इस बटालियन में आज यूपी और बिहार के जवानों की संख्या सर्वाधिक है।

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