भारत का गौरवशाली इतिहास
द्वारिका छोड़ स्वंय 4 दिन मुरैना में रहते हैं भगवान श्रीकृष्ण, इस दरमियाँ द्वारिका में कपाट बंद रहते हैं। यह माना जाता है कि आज से लगभग 643 वर्ष पूर्व सम्भवतः 1435 ई. में अमान और समान नाम के 2 सगे भाई कठुमरा राजस्थान से यहाँ आये थे, उन्होंने ही मुरैना गाँव बसाया था। इस गाँव का प्राचीन नाम मयूर वन था। समयांतर में इनके प्रेमराम, गोपराम, टेकराम, अन्धराम और नेकराम नाम के 5 पुत्र हुए।
यह पाँचों भाई भगवान श्रीकृष्ण जी के बाल सखा थे, भगवान ने अपनी लीला विस्तार के लिये भू-तल पर इन्हें भेज दिया था। इनमे से गोपराम जी को कई बार भगवान की लीलाओं का दर्शन भी हुआ। एक बार गोपराम जी को भगवान श्रीकृष्ण जी ने स्वप्न में दर्शन दिया और कहा कि में अमुक स्थान में पृथ्वी के अंदर हूँ तुम लोग मुझे बाहर निकालें और मेरी पूजा करना जिसके आशीर्वाद स्वरूप तुम्हारी खूब वंशावृद्धि होगी।
स्वप्न के अनुसार पाँचों भाइयों ने उस जगह की खुदाई की उसमे से श्री दाऊजी महाराज का श्री कृष्ण जी के रूप प्राकट्य हुआ। इनमे से सबसे बड़े भाई श्री कृष्ण की सेवा करते थे और। छोटे भाई सब उनको दाऊजी कहते थे जिसके बाद मुरैना में स्थित इस मंदिर का नाम भी श्रीदाऊजी मंदिर के नाम से पड़ गया और सभी भक्त लोग श्री कृष्ण को दाऊजी कहने लगे।
भगवान श्रीकृष्ण ने दाऊजी की सेवा से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया कि अब से वह दाऊजी के नाम से ही यहाँ जाने जाएंगे और प्रति वर्ष कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से साढ़े 3 दिन मुरैना गाँव मे आकर रहा करेंगे और तबसे दीवाली के बाद यहाँ तीन दिन श्री कृष्ण घूमने आते है और उतने दिन द्वारिका में मुख्य मंदिर के कपाट तीन दिन बंद रहते हैं। यह मूर्ति किसी कारीगर द्वारा नही बनाई गई बल्कि स्वयं-भू प्रकट हुई थी और जिस जगह यह प्रकट हुई उसे आज दाऊजी ताल के नाम से जाना जाता है जिसका जल लेकर भक्त लोग प्रसाद रूप में उसका सेवन करते है और तबसे हर वर्ष इसी दिन से इस गाँव मे मेला लगता है और लाखों की संख्या में लोग यहाँ दर्शन करने को आते हैं।