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ऐसी मालकिन मिले तो किसे नौकर होने से इनकार होगा!

   इंसान बतौर नौकर तब तक ही कायदे ये रहता है जब तक उसे मौका ना मिले! इतिहास ऐसे किस्सो से भरा पडा है जब गुंजाईश मिलते ही नौकर क्या क्या नही हो गये! नौकरो की दुनिया मे जिस बंदे का नाम सबसे पहले लिया जाना चाहिये वो है, अब्दुल मियाँ! ये महाशय नौकर बन कर इंग्लैड के राज परिवार के घर मे दाखिल हुये और पलक झपकते ही महारानी क्वीन विक्टोरिया के प्रेमी की हैसियत हासिल की! 
    रानी दीवानी थी इनकी! उन्होंने रानी को उर्दू बोलना, चिकन करी खाना और प्रेम करना सिखाया बदले में रानी ने उन्हें तीन सौ एकड़ की जागीर दी! अब्दुल्ला बीमार पड़े एक बार, क्वीन उन्हें देखने उनके घर गई, उसके बिस्तर की सिलवटे ठीक करती रही! ज़ाहिर है पूरा ब्रिटिश शाही परिवार रोया कलपा इस रिश्ते से! पर रानी तो रानी थी! जब तक रानी जिंदा रही, मुंशी अब्दुल करीम खान राजा बने रहे और तभी इंडिया वापस भेजे जा सके जब रानी कब्र के हवाले हुईं!
    चूंकि ब्रिट्रिश तब तक थोडे बहुत शरीफ हो चुके थे, वरना वो मिस्र वालो का तरीका भी आजमा सकते थे! पुराने जमाने के मिस्र मे खास खास, मुंहलगे नौकरो को मालिक के साथ जिंदा दफना दिये जाने का रिवाज था! ऐसा करने के पीछे वाजिब वजह भी थी उनके बाद, पहली तो ये मरने के बाद भी वफ़ादार नौकर साथ बना रहता है। आपके और दूसरी यह कि फिर उसे तनख़्वाह भी नहीं देना पड़ती!
    हमारे हिंदुस्तान मे भी एक काबिल नौकर हुये! इनका नाम था जमात उत दिन याकूत! ये महाशय भी थ्री इन वन थे! हिंदुस्तान की पहली महिला सुल्तान हुई रजिया! याकूत रजिया के नौकर से तरक्की करते हुये सलाहाकार और प्रेमी का पद हासिल करने मे कामयाब रहे!
    जो कुछ भी हो पर नौकर भी इंसान है और हमारे अच्छे व्यवहार के हकदार भी! नौकरों की इज़्ज़त की ही जाना चाहिये! इसलिये नहीं कि वो आपकी ज़िंदगी आसान बनाते है, बल्कि इसलिये क्योंकि वो आपके बारे में उससे ज़्यादा जानते है जितना आप सोचे बैठे हैं! उनके प्रति दयालु होना जरूरी है! पर दयालुता मे रूस की महारानी कैथरीन द ग्रेट सैकेंड की कोई दूसरी सानी मिल पाना नामुमकिन सा ही है। 
    ये अति दयालु अतिसुंदर रानी अपने सैकडो जवान नौकरो को अपने पति से भी अधिक सम्मान देती थी, ये सम्मान इतना अधिक था कि उनकी जितनी भी औलादे हुई उसमे उनके पति का कोई योगदान नही था! ये काम भी नौकरो के ही जिम्मे रहा! ऐसी मालकिन मिले तो किसे नौकर होने से इनकार होगा!
   खुद हमारे देश मे सन बारह तेरह सौ मे गुलाम इतने ताकतवर हो उठे की दिल्ली के राजा बन बैठे! इसी वंश के कुतुबुद्दीन एबक ने कुतुबमीनार बनवाई जो आज ही नौकरो की हैसियत बताने के लिये अपनी जगह पर मौजूद है!जहाँ तक नौकरो की बात है! निभाना तो मालिक को ही पडता है, ये कहावत ऐसे ही मशहूर नही हुई है कि आदमी की अच्छाई परखने के लिये यह देखना चाहिये कि उसके दोस्त और नौकर कितने पुराने हैं!
    यूनान के मशहूर कहानी कहने वाले ईसप! महान सेंट पेट्रिक जिन्होने ईसाई धर्म को बढाने मे जिंदगी लगा दी, अमेरिका मे दास प्रथा के खात्मे के लिये लडने वाले नेट टर्नर ये सभी अपनी जिंदगी के शुरूवाती दौर में नौकर ही थे! पर ये अपने मालिको पर भारी पडे और इतने भारी पडे कि इन्हे तो सब जानते है इनके मालिको को कोई नही जानता! पुरूष्य भाग्यम तो विधाता भी नहीं जानते! ऐसे में हल्के में मत लें अपने नौकरों को, नज़र बनाये रखे उन पर! लिहाज़ करते रहे उनका! पता नहीं उनमें से कौन कब सवा सेर होकर आपकी छाती पर मूँग दलने लायक बन जाये!

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