क्या कारण था कि जिन्ना की बेटी दीना वाडिया अपने पिता के साथ पाकिस्तान नहीं गईं और भारतीय नागरिक बनी रहीं?
जिन्ना की इकलौती बेटी दीना का न्यूयार्क में निधन हो गया। दीना ने पिता के विचारों के खिलाफ जाकर पारसी से शादी की थी। जिन्ना ने इस विवाह को रोकने की भरसक कोशिश की और दीना से कहा कि भारत में हजारों मुसलमान लड़के हैं, लेकिन तुम्हें सिर्फ वही मिला? क्या तुम किसी मुस्लिम लड़के से शादी नहीं कर सकती। इस पर दीना ने अपने पिता जिन्ना को जवाब दिया कि इस देश में भी तो हजारों मुस्लिम लड़कियां थीं, लेकिन आपको शादी करने के लिए मेरी पारसी मां ही मिलीं।
पाकिस्तान के कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना की इकलौती बेटी दीना वाडिया का गत दिनों न्यूयार्क में निधन हो गया। 98 वर्षीय दीना स्वतंत्र विचारों वाली क्रांतिकारी महिला थीं और शायद यही वजह थी कि उनकी अपने पिता से कभी नहीं बनी। अपने पिता के विचारों के खिलाफ जाकर उन्होंने अपनी मर्जी से शादी की थी और इसे लेकर पिता-पुत्री में दूरियां काफी बढ़ गयी थीं। वे अपने जीवनकाल में सिर्फ दो बार ही पाकिस्तान ही गयीं। एक बार जिन्ना की मौत होने पर और दूसरी बार 2004 में। उनकी दूसरी यात्रा में उनके बेटे नुस्ली वाडिया भी उनके साथ पाकिस्तान गए थे। इस यात्रा के दौरान वे बेटे के साथ जिन्ना की मजार पर भी गयी थीं। दीना के बेटे नुस्ली वाडिया ग्रुप के मुखिया हैं। वाडिया ग्रुप देश का बड़ा बिजनेस ग्रुप माना जाता है और बाम्बे डाइंग, ब्रिटेनिया इंडस्ट्रीज व गो एयर का मालिकाना हक इस ग्रुप के पास है।
पारसी मां की बेटी थीं दीना
दीना जिन्ना और उनकी पारसी पत्नी रूट्टी पेटिट की संतान थीं। 40 वर्षीय जिन्ना ने जब किशोरी रूट्टी पेटिट से शादी करने की इच्छा जताई थी तो उन्होंने दुल्हन बनने के लिए एक ही शर्त रखी कि वह अपनी मूंछें मुंडवा लेंगे। जिन्ना इस शर्त को पूरा करने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने न केवल अपनी मूंछें कटवा लीं बल्कि रूट्टी को प्रभावित करने के लिए अपनी केशसज्जा तक बदल डाली। वरिष्ठ पत्रकार शीला रेड्डी ने जिन्ना पर लिखी अपनी चर्चित पुस्तक मिस्टर एंड मिसेज जिन्ना..द मैरिज दैट शुक इंडिया में पारसी लड़की रूट्टी के साथ जिन्ना के विवाह के किस्से बयां किए हैं। रूट्टी उम्र में जिन्ना से 24 वर्ष छोटी थीं।
रूट्टी के परिवार से विवाह में कोई नहीं आया
शीला रेड्डी की किताब के मुताबिक जिन्ना ने अपने बैरिस्टर कौशल का परिचय देते हुए रूट्टी के पिता दिनशा मानेकजी पेटिट से उनकी पुत्री का हाथ मांगा था। रूट्टी उस समय मात्र 16 वर्ष की ही थीं। दिनशा बम्बई में सबसे पहले टेक्सटाइल्स मिल खोलने वालों में थे। विवाह के लिए रूट्टी के कानूनी रूप से योग्य होने तक दोनों को दो वर्ष इंतजार करना पड़ा। जैसे ही वह 18 वर्ष की हुईं दोनों का 1918 में बम्बई के जिन्ना हाउस में विवाह हो गया। रूट्टी के पिता इस विवाह से खुश नहीं थे और यही कारण था कि रूट्टी के परिवार का कोई भी सदस्य विवाह में शामिल नहीं हुआ। रेड्डी के मुताबिक रूट्टी ने विवाह के लिए इस्लाम कबूल किया और मरियम नाम रख लिया।
मां ने नहीं रखा दीना का ख्याल
विवाह के बाद रूट्टी के व्यक्तित्व में काफी बदलाव आया और वे इस हद तक बदल गयीं कि वे अपनी एकमात्र बेटी का भी ख्याल नहीं रखती थीं। इसके पीछे भी कई कारण बताए जाते हैं। बताया जाता है कि जिन्ना भी रूट्टी का ज्यादा ख्याल नहीं रखते थे। जिस वक्त दीना पैदा हुई उस वक्त जिन्ना इंग्लैंड में एक कांफ्रेस के सिलसिले में लंदन में थे। दीना का जन्म 15 अगस्त 1919 को लंदन में हुआ था। उस वक्त जिन्ना मुस्लिम छवि वाले उभरते नेता थे। बताया जाता है कि अपनी छवि को बनाए रखने के लिए उन्होंने अपनी पारसी पत्नी से दूरी बना ली। मां की अनदेखी के कारण बेटी को घर पर काफी देर तक नौकरानियों के साथ रहना पड़ता था। बेटी की इस हद तक अनदेखी हुई कि दस साल की उम्र तक उसका नामकरण तक नहीं हुआ। वैसे रूट्टी की जिंदगी भी ज्यादा लंबी नहीं चली और 29 साल की उम्र में ही उनका निधन हो गया।
कुत्ते को साथ ले गयीं मगर दीना को नहीं
जिन्ना की करीबी दोस्त सरोजिनी नायडू ने लंदन में नवजात बच्ची और उसकी मां से मिलने के बाद लिखा कि रूट्टी एक कमजोर पतंगे की तरह दिख रही थी। वह बहुत खुश नहीं दिख रही थी। जब दीना महज दो महीने की थी तब जिन्ना परिवार मुंबई लौट आया। उसके बाद ही दीना की अनदेखी शुरू हुई। दीना को नौकरानियों के भरोसे छोड़ दिया गया जबकि मां-बाप दो दिशाओं में चल पड़े। इसके बाद जिन्ना राजनीति में व्यस्त हो गए जबकि रूट्टी हैदराबाद में अपने दोस्त से मिलने चली गयीं। वे अपने कुत्ते को साथ ले गयीं मगर नवजात बच्ची को घर पर ही छोड़ दिया। हालत यह हो गयी कि रूट्टी के करीबी दोस्त भी अपनी इकलौती बेटी से उनका लगाव न होने से हैरान थे।
पाक जाने को तैयार नहीं हुईं दीना
रूट्टी की मौत के बाद जिन्ना ज्यादा कट्टरपंथी हो गए थे और इसके बाद वे मुस्लिमों के लिए अलग राष्ट्र यानी पाकिस्तान की वकालत करने लगे। बाद में उन्होंने अपने मिशन में कामयाबी भी पाई और यही कारण है कि जिन्ना को पाकिस्तान का संस्थापक माना जाता है। दूसरी ओर जिन्ना की बेटी यानी दीना अलग सोच वाली थीं। 1947 में देश का विभाजन होने पर उन्होंने भारत का नागरिक बनना पसंद किया। जानकारों का कहना है कि जिन्ना अंदर से दीना को बेहद प्यार करते थे मगर फिर भी वह पाकिस्तान में रहने को तैयार नहीं हुईं। यह बात लोगों को हैरान करती है कि जिसके पिता पाकिस्तान के संस्थापक रहे, उनकी बेटी ने आखिर क्यों भारत में रहने का फैसला किया। वैसे माना जाता है कि दीना के अपनी मनमर्जी से विवाह करने के कारण ऐसा हुआ क्योंकि जिन्ना को वह विवाह मंजूर नहीं था।
दस साल की उम्र में मां का निधन
दीना के रिश्ते अपने पिता से उस वक्त खराब हो गए थे जब उन्हें एक भारतीय पारसी नेवली वाडिया से प्यार हो गया। उस समय दीना की उम्र मात्र सत्रह साल थी। हालांकि दीना की मां एक पारसी महिला रति थीं मगर जिन्ना को यह रिश्ता किसी सूरत में मंजूर नहीं था। दीना की उम्र जब दस साल थी उसी समय उनकी मां का निधन हो गया था। बेटी के पालन-पोषण में जिन्ना को अपनी बहन फातिमा का सहयोग मिला। फातिमा ने ही जिन्ना की बेटी का पालन-पोषण किया।
शादी के मुद्दे पर बाप-बेटी में तनाव
शादी के मुद्दे को लेकर ही बाप-बेटी के बीच रिश्तों में तनाव शुरू हुआ। जिन्ना ने दीना की नेवली से शादी रोकने की हर कोशिश की मगर वे कामयाब नहीं हो सके। दीना पिता के विरोध को दरकिनार कर नेवली से ही विवाह करने पर अड़ गयीं। जिन्ना ने यह विवाह रोकने के लिए दीना से यहां तक कहा कि भारत में हजारों मुसलमान लड़के हैं, लेकिन तुम्हें सिर्फ वही मिला? क्या तुम किसी मुस्लिम लड़के से शादी नहीं कर सकती। इस पर दीना ने जवाब दिया कि इस देश में भी तो हजारों मुस्लिम लड़कियां थीं, लेकिन आपको शादी करने के लिए मेरी पारसी मां ही मिलीं। करीम छागला ने जिन्ना पर लिखी एक किताब में इस वाकये का जिक्र किया है।
दीना ने कर दी पिता से बगावत
बाप-बेटी के बीच की जुबानी जंग धीरे-धीरे एक-दूसरे को बहुत दूर ले जा चुकी थी। दीना ने पिता से बगावत करते हुए 1938 में नेवली से शादी कर ली थी। उस समय जिन्ना ने दीना को धमकी दी थी कि यदि उन्होंने वाडिया से शादी तो वे सारे संबंध तोड़ लेंगे, लेकिन अपने पिता की धमकी के आगे झुकने के बजाय दीना अपनी नानी के यहां चली गयीं। वे तब तक लेडी पेटिट के घर में रहीं जब तक कुछ महीने बाद उनकी शादी वाडिया के साथ नहीं हो गयी। वैसे एक सच्चाई यह भी है कि जिस नेवली से शादी करने के लिए दीना ने बगावत कर दी उससे उनकी शादी बहुत ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकी। दोनों के प्यार का अंत तलाक के रूप में दुनिया के सामने आया। तलाक के बाद दीना ने अपने पिता से नजदीकियां भी बढ़ाईं और एक पत्र भी लिखा था। लेकिन अपने अकेलेपन से भागने के लिए उन्होंने अपना अगला आशियाना न्यूयॉर्क में बनाया और धीरे-धीरे दीना वहीं की होकर रह गईं।
सिर्फ दो बार गयीं पाकिस्तान
वैसे जानकारों का यह भी कहना है कि दीना की विचारधारा भी जिन्ना से अलग थी। वैचारिक मतभेदों ने भी पिता-पुत्री को एक-दूसरे से दूर कर दिया था। देश के बंटवारे के बाद भी दीना कभी अपने पिता के पास नहीं गईं। हालांकि पिता की मौत होने पर वे पाकिस्तान जरूर गयी थीं। बंटवारे के समय जिन्ना के साथ उनकी बहन फातिमा साथ गईं थीं। वह भी इस कारण कि उनके नजदीकी लोग जानते थे कि जिन्ना गंभीर बीमारी से पीडि़त हैं और वो कभी भी इस दुनिया को अलविदा कह सकते हैं।
दीना वाडिया भले ही पाकिस्तान के कायदे आजम की बेटी थीं, लेकिन वो पाकिस्तान सिर्फ दो ही बार गईं थीं एक पिता की मौत के बाद 1948 में और 2004 में। कराची में अपने पिता के मकबरे पर जाने के बाद दीना ने एक किताब भी लिखी थी और उसे अपनी जिन्दगी का सबसे कटु अनुभव बताया था। साथ ही कामना की थी कि जिन्ना ने पाकिस्तान के लिए जो सपने देखे थे, वो सब सच हो जाएं। 2004 की यात्रा में उनके साथ उनके बेटे नुस्ली वाडिया और पोते भी थे। दीना ने जिन्ना के मकबरे के आगंतुक रजिस्टर में लिखा कि उस देश में, जिसे उनके पिता ने बिना किसी मदद के बनाया था, वहां होना उनके लिए दुखद और अद्भुत क्षण था।
जिन्ना ने नहीं दिया बेटी को वीजा
वैसे जानकार दीना की पाकिस्तान यात्रा के बारे में एक और बात भी बताते हैं। जिन्ना का निधन सितंबर 1948 में हुआ। दीना को शायद यह बात नहीं पता थी कि उनके पिता को कैंसर जैसी गंभीर बीमारी हो चुकी है। पिता के निधन से पहले पिता-पुत्री के रिश्ते काफी तल्ख हो चुके थे। लेकिन जब दीना ने यह बात पता लगी कि उनके पिता गंभीर तौर पर बीमार हैं तो उन्होंने अपने दोनों बच्चों के साथ उनसे मिलने के लिए पाकिस्तान जाने की इच्छा जताई, लेकिन जिन्ना ने उन्हें वीजा देने से मना कर दिया।
दीना को वीजा तभी मिला जब जिन्ना सुपुर्द- ए-खाक किए जाने वाले थे। माना जा रहा था कि जब उनकी बुआ फातिमा का इंतकाल हुआ, तब भी वह वहां जाएंगी, लेकिन तब दीना पाकिस्तान नहीं गयीं। अगली बार वह 56 साल बाद वर्ष 2004 में अपने बेटे नुस्ली वाडिया के साथ पिता के देश गईं।
बेटे को था मां से प्यार
पति से अलगाव के बाद दीना ज्यादातर समय न्यूयार्क में रहती थीं मगर न्यूयार्क में रहने के बावजूद मुम्बई में अपने अपने बेटे नुस्ली वाडिया से लगातार संपर्क में रहती थीं। नुस्ली अपनी मां से इस कदर प्यार करते थे कि कहा करते थे कि उनकी तरह का मां-बेटे का रिश्ता दुनिया में शायद ही कहीं हो। उनका कहना था कि मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी मां कहा हैं। वह कहीं हों, लेकिन हमारी दिन में एक बार बात जरूर होती है।