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लोकतंत्र की असली मालिक जनता, कांग्रेस और भाजपा ने अभी तक खूब किया बर्बाद

   
  बांसवाड़ा/राजस्थान।। हाल ही में राजस्थान के जयपुर में कांग्रेस द्वारा केंद्र सरकार के खिलाफ 4 सितंबर को 'महंगाई पर हल्ला बोल रैली' को लेकर जयपुर में एक बैठक का आयोजन किया गया था। बैठक के दौरान राजधानी जयपुर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा की अध्यक्षता में एक पांच सितारा होटल में जनता के टैक्स के पैसों से मजे करते हुए महंगाई पर रोना रोया गया था। बताते चले की इस पांच सितारा होटल में कांग्रेस के उपस्थित प्रति नेता पर भोजन समेत अन्य खर्च 2000 रूपये के लगभग बताया जा रहा है। कांग्रेस जहा होटलों में गुलछर्रे उड़ाते हुए अपनी भविष्य की दिखती हुई हार को रोकने में लगी हुई है, वही जनजातीय जिलों में शिक्षा, चिकित्सा और रोज़गार के हालात निकम्मी लम्पट कांग्रेस सरकार के कारण निस्तनाबूत हो चुके है। 
Manish Sisodiya in New York Times
अबोध बच्चे अपनी किस्मत के भरोसे 
  शहरों से लेकर गाँवो तक में सरकारी स्कूलों के हालत किसी से छुपे नहीं है, वही कोरोना में बर्बाद हो चुकी जनता जहा राजस्थान सरकार पर विश्वास जताते हुए प्राइवेट स्कूलों से सरकारी स्कूलों की तरफ बढी लेकिन सरकार ने भी अपनी नीचता दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सभी जानते है की शिक्षा के नाम पर करोड़ों रुपए हर साल सरकार जनता के टेक्स के पैसों से खर्च करती है लेकिन उस खर्चे से जनता को अभी तक झाट फ़ायदा नहीं हुआ है, क्यों की इस नीच कांग्रेस की नीति ही जनता को बर्बाद करने वाली चूतिया टाइप की थी। जनजातीय जिले बांसवाड़ा जैसे शहर में भी ऐसे हालात है, जहा सरकारी स्कूलों में लाखों तनख्वाह पाने वाले टीचर मैडमों के साथ गुलछर्रे उड़ाते है। वही अबोध बच्चे अपनी किस्मत का रोना रोते हुए खुले आसमान तले पेड़ के नीचे पढ़ने को विवश है। 
Manish Sisodiya in New York Times
लोकतंत्र की असली मालिक जनता है
   बता दे की आज़ादी के बाद देश में अभी तक यदि किसी राजनैतिक पार्टी ने जनता का भला करने की सोची है तो वह आम आदमी पार्टी है। इस बात का पुख्ता प्रमाण विश्व में तब जग जाहिर हो गया जब आम आदमी पार्टी के ही दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया जो की दिल्ली की सरकारी स्कूलों के कायापलट के कर्णधार साबित हुए है। सिसोदिया के इसी जनहित के कार्य को अमेरिका के सबसे बड़े मिडिया हाउस न्यूयॉर्क टाइम्स से अपने फ्रंट पेज पर छापा है, क्योंकि वह भारत में चलने वाला कोई बिकाऊ भुजिया पापड़ मिडिया हाउस नहीं है। इसमें भी दिल्ली में ही बैठे कुछ हरामखोर नेताओं को सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चो के जनहित की बात हज़म नहीं हुई और उन्होंने बिना किसी कारण के मनीष सिसोदिया को ब्लैकमेल करने के लिए सीबीआई को उनके पीछे छू कर दिया। लेकिन ऐसे कुकर्म करने वाले सफ़ेद दढ़ियल झाटू नेता को यह सोचना होगा की उसे इसी जनता ने उस सर्वोच्च तख़्त तक पहुँचाया है और वही जनता उसे अब वही जनता लात मार कर ज़मीदोज़ भी कर देगी। इस देश की जनता अब किसी राजनैतिक पार्टी की गुलाम नहीं बल्कि लोकतंत्र की असली मालिक है।  
Manish Sisodiya in New York Times
शिक्षा के बजट में भी नेता खुद देखते है अपना विकास
   केन्द्र सरकार से लेकर राजस्थान सरकार भले ही शिक्षा के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च कर लाख दावे करे लेकिन सरकार के ललनटॉप और अंगूठाछाप मंत्री को झंड भी पता नहीं की जनता आखिर चाहती क्या है? कांग्रेस और भाजपा के नेता बस राजस्थान को लूटने में अपनी-अपनी बारी का इंतज़ार करते रहते है, जैसे उन्होंने जनता को लूटने का बारी-बारी से कोई टाईअप कर रखा हो की एक बार कांग्रेस राजस्थान को लुटेगी और फिर एक बार भाजपा लुटेगी। जी हां सरकार के खोखले दावो की पोल खोलती एक कलमकार की हकीकत भरी रिपोर्ट तो आज कुछ ऐसा ही बया कर रही है। सरकारें आतीं-जाती रहती है, शिक्षा के नाम पर करोड़ों रुपए भी खर्च किए जातें हैं ताकी कोई गरीब का बेटा झोपड़ी से निकल कर देश का भविष्य बनें। लेकिन यदि शिक्षा के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च कर दिए जाने के बाद भी बच्चों को स्कूल की छत तक नसीब ना हो तो इसका कसुरवार कौन है? बिना घुमाए बात की जाए तो इसके सीधे कसूरवार वो हरामखोर नेता है जो शिक्षा के बजट में भी खुद अपना विकास देख रहे है। 
Manish Sisodiya in New York Times
स्कूले तो आज़ादी के समय बनी थी, तो क्या फिर देश अब नेताओं का गुलाम बन गया है?  
  वैसे तो शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रो में सरकार ने शिक्षा का जनाज़ा निकाल दिया है लेकिन आज हम राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के सरोना पंचायत के गांव छोटी कदवाली के प्राथमिक विद्यालय की दुर्दशा की और ध्यान आकर्षित कराने का प्रयास कर रहे हैं। बता दे की यहां वर्षों पुर्व सरकारी स्कूल तो सर्व शिक्षा अभियान के तहत बन गई जो वर्तमान में जर्जर अवस्था में है। मौके पर स्कूल की ईमारत की छतो से बारीश का पानी टपकता है। ऐसे में स्कूल के छात्र आसमान तले पेड़ के नीचे पढ़ने को विवश है। लेकिन आज़ादी के बाद से सिर्फ एक बार बनी स्कूलों  दुर्दशा पर लफंगी सरकार अब ध्यान देने को राज़ी नहीं क्यों यदि बच्चे पढ़ गए तो सरकार से सवाल करेंगे, विकास के बारें में पूछेंगे, रोज़गार मांगेगे जो भड़वे नेताओं को हज़म नहीं होगा। इसलिए इस पर अब तक ना ही सरकार, ना ही जनप्रतिनिधि और ना ही शिक्षा विभाग इस और ध्यान दे रहा है। वही पत्रकार द्वारा जब सरोना पंचायत की सरपंच श्रीमती शारदा डीडोड से इस सम्बन्ध में पुछा गया तो उन्होंने बताया की स्कूल पुरानी है, बारीश में छात्रों को नहीं बैठा सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा की शिक्षा विभाग को भी इस बाबत अवगत करा दिया गया है। लेकिन बजट आएगा या नहीं स्कूल बनेगे या नहीं इस सम्बद्ध में कुछ कहा नहीं जा सकता है। 

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