यह समुदाय एक बंजारा यानी घुमक्कड़ वाली जिंदगी जीता है। यह एक जगह स्थिर नहीं रहते इसलिए इन्हें "जिप्सी" कहा जाता है। यह समुदाय करीब 1000-1200 साल पहले उत्तर भारत खासकर राजस्थान से चलते-चलते यूरोप चले गया।
डीएनए से यह पता चला कि राजस्थान की कालबेलिया प्रजाति का डीएनए इन से पूरी तरह से मैच होता है। यानी कि यह राजस्थान के घुमंतू बंजारा समुदाय से हैं, जो यूरोप में बस गए हैं इनकी भाषा रोमा पूरी तरह से भारतीय भाषा से मिलती जुलती है।
महमूद गजनी द्वारा गुलाम बनाकर अफगानिस्तान ले जाया गया
रोमा करीब एक हजार साल पहले उत्तर भारत से यूरोप की ओर पलायन कर गए। बाद में ये बाइजेंटाइन साम्राज्य का हिस्सा बन गए। चूंकि यह साम्राज्य अपने आपको रोमन साम्राज्य का उत्तराधिकारी मानता था तो भारत से गए इन बंजारों ने अपना नाम ही "रोमा" रख लिया। किन कारणों से वे भारत छोड़कर गए या भारत में वे किस जाति से संबंधित थे? जैसे कई प्रश्न है जिनका सटीक जवाब अभी तक नहीं मिल पाया है।
कुछ इतिहासकार यह मानते है कि रोमा लोगों को हजारो की संख्या में महमूद गजनी द्वारा गुलाम बनाकर अफगानिस्तान ले जाया गया था। 15वीं शताब्दी के आस-पास वे आजाद होकर यूरोप चले गए थे। भारत छोड़ने के बाद रोमा जहाँ भी गए, उन्हे वहाँ की स्थानीय बोली सीखनी पड़ी। शायद इसलिए उनकी भाषा और व्याकरण काफी बदल गई, लेकिन सैकड़ों साल पश्चिम एशिया और यूरोप में भटकने के बावजूद रोमा भाषा आज भी पश्चिम भारतीय बोलियों-राजस्थानी, पंजाबी और गुजराती के बहुत करीब है।
रोमा समुदाय यूरोप के कई देशों में बिखरा हुआ है। यूरोप में रोमा-विरोधी अभियानों का लंबा इतिहास रहा है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान नाजीपरस्त फ्रांसीसी सरकार ने भी रोमा समुदाय के हजारों लोगों को जर्मनी से खदेड़ दिया था। नाजियों ने भी रोमा समुदाय पर भयंकर अत्याचार किए थे।
रीति रिवाज पूरी तरह से हिंदू धर्म के
यह लोग ईसाई धर्म को नहीं मानते इन के रीति रिवाज पूरी तरह से हिंदू धर्म के हैं क्योंकि यह काफी अपराध करते हैं इसीलिए यूरोप के कई देशों में इन्हें एक अपराधी के तौर पर देखा जाता है।
रोमा लोगों पर सबसे ज्यादा जुल्म फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति द्वारा किये गए
आधुनिक इतिहास में रोमा लोगों पर सबसे ज्यादा जुल्म फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति निकोलस सारकोजी ने 2007 से 2012 के अपने कार्यकाल के दौरान किया। इन्होंने चुन-चुन कर अपने पूरे देश से रोमा जिप्सी लोगों को खदेड़ दिया या उन्हें जेलों में बंद किया। इन्हें बसों में भर-भर के रोमानिया और बुलगारीया छोड़ दिया गया। निकोलस सारकोजी की इसके लिए काफी आलोचना हुई रोहिंग्या पर भारत को उपदेश देने वाले तमाम देश निकोलस सरकोजी के इस आचरण पर एकदम खामोश थे। बाद में जब निकोलस सरकोजी पर कई गंभीर आरोप लगे तब उन्हें ब्रुसेल्स में यूरोपियन यूनियन के सामने पेश होना पड़ा।
सामूहिक दंड देने का तालिबानी तरीका फ्रांस ने कैसे अपना लिया?
16 सितंबर 2008 को ब्रुसेल्स में यूरोपीय संघ की एक शिखर बैठक में तमाम आलोचनाओं को खारिज करते हुए सरकोजी ने जोर देकर कहा था, कि जिप्सियों या रोमा लोगों को खदेड़ना सुरक्षा की दृष्टि से आवश्यक है और इस बारे में फ्रांस को किसी की नसीहत की जरूरत नहीं है। उन्होंने उखाड़े गए सौ रोमा शिविरों को आतंक, अपराध और वेश्यावृत्ति का अड्डा करार देते हुए कहा कि 'हम आगे भी इन अवैध शिविरों को नष्ट करते रहेगे।' सरकोजी ने अपने दावे की पुष्टि में अभी तक कोई ठोस आकड़े पेश नहीं किए हैं। यदि रोमा अपराध में लिप्त है भी तो उन्हे कानून सम्मत सजा मिलनी चाहिए। सामूहिक दंड देने का तालिबानी तरीका फ्रांस ने कैसे अपना लिया? ऐसा नहीं है कि फ्रास में सरकोजी के इस कदम का विरोध नहीं हुआ। उस वक्त पचास हजार फ्रांसिसियों ने पेरिस व अन्य शहरों में रोमा लोगों से हो रहे भेदभाव के खिलाफ प्रदर्शन किया। यूरोपीय संघ ने भी फ्रास पर आरोप लगाया है कि अवैध आव्रजकों के शिविरों को उखाड़ने के नाम पर वह यूरोप में नस्लवाद को बढ़ावा दे रहा है।
रोमा जिप्सी पर जो अत्याचार किए उसकी उन्हें सजा मिली
अंततः 2012 में निकोलस सारकोजी बुरी तरह से हार गए और राजनीति से पूरी तरह से बाहर हो गए आज निकोलस सारकोजी कहां है किसी को नहीं पता लेकिन उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने जो रोमा जिप्सी के ऊपर अत्याचार किए उसकी उन्हें सजा मिली।
'रोमा लोगों का इतिहास विपत्ति और वेदना का इतिहास है'
इदिरा गांधी द्वारा 1983 में यूरोप में रोमा महोत्सव में कही गई बात को यहा दोहराना प्रासंगिक होगा कि 'रोमा लोगों का इतिहास विपत्ति और वेदना का इतिहास है, लेकिन नियति के थपेड़ों पर मानवीय उत्साह की जीत का भी इतिहास है।'
भारत ने कड़ी आपत्ति दर्ज की
मोदी सरकार के आने के बाद यूरोप के कई देशों में जो रोमा जिप्सी ऊपर अत्याचार हुए उस पर भारत ने कड़ी आपत्ति दर्ज की और यूरोपियन यूनियन के सामने भारत के राजदूत में भारत का पक्ष कई बार रखा और अंततः यूरोपियन यूनियन ने अपने अपराधी लिस्ट में से रोमा जिप्सियों को बाहर कर दिया।
नरेंद्र मोदी सरकार के दबाव के बाद यूरोप के तमाम देशों में रोमा जिप्सियों के खिलाफ नस्ल भेद कानून बनाया गया यानी कि अब कोई भी पुलिस या प्रशासन या कोई भी व्यक्ति यदि रोमा जिप्सियों से भेदभाव करेगा तब उसके ऊपर गंभीर धाराओं में केस होगा और कई देशों में जो इनके ऊपर नस्लीय भेदभाव होते थे उसे भी समाप्त कर दिया गया है।
पहले यूरोप के किसी भी शहर में अपराध के केस होते थे तब पुलिस रोमा जिप्सी के अड्डों पर जाकर उन्हें बिना किसी सबूत के प्रताड़ित करती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं होता।
यूरोप की मुख्यधारा में किया जाएगा शामिल
अब रोमा जिप्सी को यह अधिकार मिला है कि वह अपने खिलाफ यदि भेदभाव है तो उसकी शिकायत पुलिस और प्रशासन से कर सकता है साथ ही रोमानिया, बुलगारिया, फ्रांस, फिनलैंड, नॉर्वे, स्विट्जरलैंड, जर्मनी, ऑस्ट्रिया जैसे तमाम देशों ने रोमा जिप्सी लोगों के पुनर्वास के लिए कई योजनाएं भी चलाई हैं और तमाम यूरोप की सरकारों की कोशिश यह है कि इन्हें बंजारा और घुमंतू प्रजाति से हटाकर एक जगह स्थिर शहरी समुदाय बनाया जाए ताकि रोमा जिप्सी भी यूरोप की मुख्यधारा में शामिल हो सके।
रोमा जीपी रोमानिया की जनसंख्या के 10% हैं हंगरी में 5% बुल्गारिया में 8% यूक्रेन में 3% फ्रांस में 5% फिनलैंड में 1% और दूसरे तमाम यूरोपियन देशों में भी ये 1% से 2% हैं।