इस गांव में बनी है 100 साल पुरानी मस्जिद, हिंदू करते हैं साफ-सफाई
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इस गांव में बनी है 100 साल पुरानी मस्जिद, हिंदू करते हैं साफ-सफाई

   मुजफ्फरनगर/उत्तर प्रदेश।। देश में इन्‍टॉलरेंस को लेकर बहस जारी है। जहां कुछ लोगों का मानना है कि देश में इन्‍टॉलरेंस बढ़ रही है, तो वहीं कुछ का कहना है कि इंडिया जैसा कोई दूसरा टॉलरेंट देश नहीं है। इस सबके बीच मुजफ्फरनगर का एक गांव ऐसा भी है, जो सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल बना हुआ है। दंगों की वजह से बदनाम मुजफ्फरनगर के हिंदू आबादी वाले गांव नन्हेड़ा में करीब 100 साल पुरानी मस्जिद अब भी गांव की धरोहर बनी हुई है। यहां हिंदू समाज के लोग सुबह-शाम मस्जिद की साफ-सफाई करते हैं।
हिंदू समाज के लोग मस्जिद को मानते हैं धरोहर
    दरअसल, नन्हेड़ा गांव में आजादी से पहले अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक समाज के लोग मिल-जुलकर साथ रहते थे। आजादी के बाद मुस्लिम परिवार इस गांव से अकारण ही पलायन कर गए। इसके बाद से इस गांव में बहुसंख्यक समाज के ग्रामीण रह रहे हैं और गांव में बनी मस्जिद की देखभाल कर रहे हैं। 2500 के करीब आबादी वाले इस गांव में जाट, हरिजन और ब्राह्मण समाज के लोग रहते हैं। गांव की आबादी के बीच बनी करीब 100 साल पुरानी मस्जिद आज भी यहां मुस्लिम समाज के अतीत की कहानी बयां करती है। अक्सर इस मस्जिद के गेट पर ताला लगा रहता है, लेकिन इसके बावजूद यहां गांव के लोग सुबह-शाम ताला खोलकर मस्जिद में साफ-सफाई करते हैं। ईद के मौके पर तो गांववाले मस्जिद की रंगाई-पुताई भी कराते हैं। गांव में चार मंदिर होने के बाद भी हिंदू समाज के लोग मस्जिद को गांव की अनमोल धरोहर मानते हैं। यही कारण है कि ये गांव क्षेत्र में चर्चा का केंद्र बना हुआ है।
क्‍या है गांव के प्रधान का
  ग्राम प्रधान रह चुके दारा सिंह अक्सर गांव की चौपाल पर ग्रामीणों के साथ मस्जिद की देखरेख पर विचार-विमर्श करते रहते हैं। साथ ही वह खुद भी नंगे पांव मस्जिद की सफाई करते हैं। दारा सिंह ने बताया कि गांव की मस्जिद की देख-रेख हमारी पहली प्राथमिकता है। उन्‍होंने बताया कि आजादी को कई साल हो गए हैं, लेकिन इस गांव में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं है। गांव में बने मंदिरों की तरह ही इस मस्जिद की भी देखरेख की जाएगी।
    गांव के ही निवासी युवा सोनू चौधरी ने बताया कि ये मस्जिद करीब 100 साल पुरानी है। उस समय तो हम पैदा भी नहीं हुए थे। आज ये मस्जिद गांव की धरोहर बन चुकी है। यही वजह है कि इस गांव में आज भी इंसानियत जिंदा है।