एक समय साईं बाबा अपने समय मे भी हिंदू और मुसलमानों दोनों के लिए अपनी उपदेश शैली के लिए इतने लोकप्रिय थे, कि बाल गंगाधर तिलक भी उनसे मिलने गए थे।
लेकिन आज बहुत से लोग साई बाबा को सिर्फ इसलिए पसंद नहीं करते हैं, क्योंकि वे ऐसा सोचते हैं कि साई बाबा एक मुस्लिम थे और उनका पहनावा भी कुछ ऐसा ही था जहा वह अपने सिर को कपड़े से ढकते थे और मुसलमानों की तरह कान में छेद किये हुए थे। जानकारों का कहना है कि वो पहले एक मस्जिद में भी रहा करते थे।
लेकिन साई बाबा के इस संसार से जाने के बाद साईं बाबा को दी जाने वाली लोकप्रियता मुख्य रूप से बॉलीवुड द्वारा अपनी फिल्मों के माध्यम से बढ़ा चढ़ा कर दी गयी थी, क्योंकि साईं बाबा महाराष्ट्र के थे और बॉलीवुड में मराठी संस्कृति का अच्छा खासा प्रभाव रहा है। वही बॉलीवुड के साथ-साथ साई बाबा भी कब पूरी दुनिया मे एक आस्था का केंद्र बन कर बहुत ही लोकप्रिय हो गए इस बात का किसी को पता ही नही चला।
लेकिन छत्तीसगढ़ कबीरधाम जिले में जून 2014 को ही साई बाबा से सम्बंधित ऐसी कई भ्रांतियां शुरू हो गईं, जिससे 13 हिंदू अखाड़ों के प्रतिनिधियों और अन्य धर्मगुरुओं ने साईं बाबा और कई हिन्दू धर्म से सम्बंधित मुद्दे पर चर्चा की थी और निर्णय लिया कि, साईं बाबा न तो भगवान हैं और न ही गुरु, इसलिए उनकी पूजा नहीं की जा सकती है।
इसके बाद कई घटनाएं हुईं जहां लोगों ने 2020 में अरुणाचल प्रदेश और अप्रैल 2021 में दक्षिण दिल्ली में साईं बाबा की मूर्ति को तोड़ने की कोशिश की, जिसके बाद "सरस्वती नरसिंहानंद" ने साईं बाबा की मूर्ति को तोड़ने वाले को बधाई भी दी और कहा कि "अगर मेरे पास कोई रास्ता होता, तो साई जैसे जिहादी मंदिरों में प्रवेश नहीं कर पाएंगे।"
हालाँकि साईं बाबा अभी भी उस गलत धारणा से भी कही अधिक लोकप्रिय बने हुए हैं, अभी भी साईं बाबा की कई मूर्तियाँ पंजाब के क्षेत्र में मंदिरों में देखी जा सकती हैं और लोग तो साईं बाबा के नाम पर उपवास भी करते हैं और पूजा भी। वही आरएसएस भी इस मुद्दे पर चुप है और आरएसएस के सदस्य के. गोविंदाचार्य ने कहा कि "वह एक मुसलमान थे, लेकिन उन्होंने मूर्ति पूजा का भी विरोध नहीं किया और एक अच्छे हिंदू बने रहे, इसलिए वह अब हमारे हैं।"
लेकिन फिर भी कई धर्मावलम्बियों को इन सब मे मुख्य समस्या यह लगती है की कई मंदिरों में हिन्दू देवी-देवताओं के बगल में साईं बाबा की मूर्ति की पूजा की जाती है, कई लोगो के अनुसार वह बहुत है गलत है। यह बिलकुल वैसा ही है की जहां किसी सिख को किसी गुरुद्वारे में गुरु ग्रंथ साहिब के बजाय किसी दूसरे सिख संत के सामने सिर झुकाना पढ़े, तो शायद उसे भी अच्छा नही लगेगा। कही ना कही यही समस्या हिन्दू समुदाय में भी साई बाबा को लेकर हो सकती है। जिसे विभिन्न मंदिर प्रबंधनो के साथ चर्चा करके इस मामले को शांति से सुलझाया भी जा सकता है।