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दिव्या मित्तल : बड़े अफसरों की मेहरबानी से वसूली का कारोबार

निलंबित एएसपी दिव्या मित्तल से पीड़ित लोगों की लंबी लाइन
एक पीड़ित को तो चार दिनों तक पुष्कर के एक रिसोर्ट में बंधक बनाए रखा
  जयपुर/राजस्थान।। 2 करोड़ रुपए की रिश्वत मांगने की आरोप में अजमेर सेंट्रल जेल में बंद एसओजी की निलंबित एएसपी दिव्या मित्तल से पीड़ित लोगों की लंबी लाइन है। दिव्या को पकड़ने वाले एसीबी के अधिकारियों को भी वसूली के तौर तरीकों पर आश्चर्य है। दिव्या ने एक पीड़ित को पुष्कर के एक रिसोर्ट में चार दिनों तक बंधक बनाए रखा। यह रिसोर्ट आबकारी पुलिस से बर्खास्त सिपाही सुमित के रिश्तेदार का बताया जाता है। सुमित ही दिव्या के वसूले के कारोबार में दलाल की भूमिका निभा रहा था। एसीबी को सुमित की सरगर्मी से तलाश है। नशीली दवाओं के बहुचर्चित प्रकरण में दिव्या ने देश की प्रमुख नशीली दवा निर्माता कंपनियों के मालिकों को जांच के दायरे में शामिल कर लिया। 
Divya Mittal
  हालांकि निर्माता कंपनियों ने अपनी बिक्री का कार्य नियमों के अनुरूप किया, लेकिन जिन लोगों ने दवाइयां खरीदी, उनकी गड़बडिय़ों में दिव्या ने निर्माता कंपनियों के मालिकों को डरा धमका कर करोड़ रुपए की मांग की। ऐसी कंपनियां चाहे हरिद्वार की हो या देहरादून की। दिव्या ने किसी को भी नहीं छोड़ा। प्रकरण में नामजद नहीं होने के बाद भी गिरफ्तारी का डर दिखाकर दिव्या ने करोड़ रुपए मांगे। कंपनियों के मालिकों को डराने धमकाने के लिए उदयपुर से लेकर पुष्कर तक के रिसोर्टों का उपयोग किया। इन रिसोर्टों में पीड़ितों को बंधक बनाकर रखा गया। हरिद्वार की एक कंपनी के मालिक को भी डराने के लिए पुष्कर के रिसोर्ट में चार दिनों तक रखा गया। जानकारों की माने तो रिसोर्ट के मालिक से भी दिव्या मित्तल के सौहार्दपूर्ण संबंध रहे। 
  मालूम हो कि एसीबी ने दिव्या को गत 16 जनवरी को एक पीड़ित विकास अग्रवाल की शिकायत पर गिरफ्तार किया था। हालांकि एसीबी दिव्या को रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार करना चाहती थी, लेकिन ट्रेप की योजना लीक हो जाने के कारण दिव्या को रंगे हाथों नहीं पकड़ा जा सका। अलबत्ता एसीबी के पास वो रिकॉर्डिंग है जिसमें दवा निर्माता कंपनी के मालिक से दो करोड़ रुपए की रिश्वत मांगी जा रही है। एसीबी के अधिकारियों का कहना है कि भले ही दिव्या को रंगे हाथों न पकड़ा गया हो, लेकिन रिश्वत मांगने के पर्याप्त सबूत हैं। एसीबी के पास वो सारे सबूत हैं जिनके माध्यम से अदालत में दिव्या को सजा दिलाई जा सकेगी। 
  यहां यह भी उल्लेखनीय है कि दिव्या को पकड़ने की योजना एसीबी के एडीजी दिनेश एमएन के नेतृत्व में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक बजरंग सिंह शेखावत ने बनाई थी। दिव्या की गिरफ्तारी के अब ऐसे अनेक लोग सामने आ रहे हैं, जिन्होंने दिव्या को रिश्वत दी है। एसीबी के अधिकारियों को इस बात पर भी आश्चर्य है कि जांच के लिए दिव्या ने जो तौर तरीके अपनाए वे पुलिस थानों में भी नहीं अपनाए जाते हैं। दिव्या ने बिना किसी प्रकरण अथवा कारण के ही कई दवा निर्माता कंपनियों के मालिकों से पूछताछ की। चूंकि दिव्या पर पुलिस विभाग के बड़े अफसरों की मेहरबानी रही, इसलिए पीड़ितों की कोई सुनवाई नहीं हुई। यदि 16 जनवरी को एसीबी दिव्या को गिरफ्तार नहीं करती तो रिश्वत मांगे का कारोबार चलता रहता। 
  24 जनवरी को अजमेर स्थित एसीबी के विशेष न्यायालय ने दिव्या के जमानत प्रार्थना पत्र को भी खारिज कर दिया है। जज संदीप शर्मा ने जमानत की अर्जी को खारिज करते हुए रजत कुमार बनाम स्टेट ऑफ गुजरात मामले में फैसले का उल्लेख किया है। जज का मानना रहा कि भ्रष्टाचार सभ्य समाज का गंभीर शत्रु है जो लोक सेवक के भ्रष्ट आचार से समाज को पीड़ित करता है। जमानत के प्रार्थना पत्र का विरोध करते हुए एसीबी की ओर से कहा गया कि उनके पास रिश्वत की राशि के लेनदेन की सत्यापित वॉयस रिकॉर्डिंग है। इस प्रकरण में एसीबी की अदालत ने जो टिप्पणी की है उसे भी गंभीर माना जा रहा है।

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