‘‘मास मीडिया का लोकतंत्र पर प्रभाव‘‘ विषय पर स्व. के.सी. सौंधी स्मृति व्याख्यान
निर्भीकता और निष्पक्षता से खामियों को उजागर करना और लोक को जागृत करना जरूरी -डाॅ. चन्द्रभान
जयपुर/राजस्थान।। पूर्व मंत्री और बीस सूत्री कार्यक्रम के उपाध्यक्ष डॉ चंद्रभान ने कहा कि लोक को जागृत करना और सरकार की गलत नीतियों और खामियों को सामने लाने का काम पत्रकारों का है। इसमें निर्भीकता और निष्पक्षता की आवश्यकता है, किंतु इसमें कमी आई है। भारत के नागरिक हों, मीडिया, कार्यपालिका, न्यायपालिका हो सभी का दायित्व है कि वे देश को सर्वोपरि मानें। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया की भी आज महत्वपूर्ण भूमिका है, लेकिन इसे जिम्मेदार बनाना होगा।
डॉ. चंद्रभान प्रोग्रेसिव एनआरआई एसोसिएशन यू.के. और कानोड़िया महिला महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में वरिष्ठ पत्रकार केसी सौंधी की स्मृति में मास मीडिया का लोकतंत्र पर प्रभाव विषयक संगोष्ठी में बोल रहे थे। डॉ चंद्रभान ने कहा कि आज लोकतंत्र और पत्रकारिता के सामने खतरे हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था दुनिया की बेहतरीन व्यवस्था है। ‘‘लोकतंत्र खतरे में है‘‘ यह एक जुमला बन गया है। आज पत्रकारिता को लेकर भी कई प्रकार की चर्चा होती है। सही मायने में कहा जाए तो हमारा लोकतंत्र मजबूत है। सबसे बड़ा खतरा पत्रकारों और पत्रकारिता पर है। स्व. सौंधी जैसे पत्रकार विरले होते हैं जो लोकतंत्र की मजबूती को प्रमुख ध्येय मानते थे। आज की पत्रकारिता में काफी बदलाव आ गया है। पत्रकारों की स्वतंत्रता काफी कम हो गई है।
समाज कल्याण बोर्ड राजस्थान की अध्यक्ष डाॅ. अर्चना शर्मा ने कहा कि राजनीति आज देश और दुनिया की धुरी हो गई है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका का वर्चस्व हमेशा रहा है और रहना चाहिए। ऐसे में पत्रकारिता की जिम्मेदारी हो जाती है कि वह समाज को जागरूक करे। लोकतंत्र के सभी स्तंभ स्वतंत्र हैं। ज्यूडिशरी कमजोर हो गई तो देश कहां जाएगा। एक समय पत्रकार अपने विवेक से समाचार तैयार किया करते थे। वह हर मुद्दे पर शोध करते हुए लोगों को न्याय दिलाते थे। आज के परिवेश में हम कार्यपालिका का वर्चस्व चाहते हैं जो खतरनाक है। पत्रकारिता का काफी क्षरण हुआ है। पत्रकारिता की विश्वसनीयता आवश्यक है। एक जमाने में निष्ठावान पत्रकार मुद्दे को समाधान तक ले जाते थे लेकिन संपादक नामक संस्था अब कमजोर हो गई है।
डाॅ. अर्चना शर्मा ने कहा सोशल नेटवर्क कई मायनों में अर्थवान है लेकिन कई चैनलों में न तो सच्चाई है ना और अच्छाई है। निष्पक्ष पत्रकारिता नहीं रही तो आम आदमी की शक्ति कमजोर हो जाएगी। यह जरूरी है कि आज की पत्रकारिता लोकतंत्र को मजबूती दे।
जनसंख्या और दिनमान के संपादक रहे सतीश झा ने कहा कि ऐसा लिखें और छपे जिसका जनता में असर हो। लोकतंत्र में लोक की बात होनी चाहिए। एक समय तक अंग्रेजी पत्रकारिता के मुकाबले हिंदी पत्रकारिता का कम प्रभाव माना जाता था लेकिन कालान्तर में हिन्दी पत्रकारिता प्रतिष्ठित हुई। आज हिंदी पत्रों के मुकाबले अंग्रेजी अखबारों का प्रसार कम है जो हिंदी पत्रकारिता का सम्मान है। हिंदी समाचार पत्रों ने जन भाषा को भी अपनाया है। इससे जनता से जुड़ने के अवसर बढ़ते हैं। पत्रकारिता की जिम्मेदारी है कि वह जनता की सोच का आइना सामने रखे। झा ने कहा कि आज इन्वेस्टिगेटिंग पत्रकारिता में भी कमी आई है। पत्रकारों का काम सरकार से सवाल पूछना होना चाहिए। हम सवाल करना न छोड़ें।
पूर्व कुलपति प्रो. नरेश दाधीच ने कहा कि जनप्रतिनिधियों की संसदीय परंपरा में जनता के ट्रस्टी की भूमिका होती है। उनका काम राष्ट्रहित में होना चाहिए न कि अपने संसदीय क्षेत्र तक सीमित रहें। कालान्तर में राजनीतिक दल मजबूत होने से जनप्रतिनिधि की भूमिका बदल गई। वे दलगत आधार पर मुद्दों को लेकर अलग-अलग व्याख्या करने लगे। नागरिकों के हित में पारित फैसलों का लाभ भी जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच पाता ऐसे में पत्रकारिता पर भरोसा बढ़ा क्योंकि वे राजनीतिक दलों की विचारधारा से मुक्त होते हैं। ऐसे में मीडिया का महत्वपूर्ण रोल है।
वरिष्ठ मीडियाकर्मी और साहित्यकार कृष्ण कल्पित ने स्वर्गीय के.सी. सौंधी को याद करते हुए कहा कि आज के मीडिया और जनता के बीच जो गहरे संबंध हुआ करते थे। वैसी स्थितियां आज नहीं है और ऐसा होना लोकतंत्र के हित में नहीं है।
प्रारंभ में प्रोग्रेसिव एनआरआई एसोसिएशन के महासचिव एवं सेंटर फॉर इकोन एंड फाइनेंस यूके के निदेशक प्रो. सुरेश दैमन ने व्याख्यान माला की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए कहा कि आज पत्रकारिता और लोकतंत्र जैसे महत्वपूर्ण स्तंभों पर खुले मन से चर्चा होनी चाहिए। इसी से हमारा लोक मजबूत होगा।
कार्यक्रम के पूर्व स्व. सौंधी की सुपुत्री डाॅ. सारिका सौंधी कौल ने अतिथियों का स्वागत किया और अंत में कानोड़िया कालेज की प्राचार्य डाॅ. सीमा अग्रवाल ने आभार व्यक्त किया।