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आरोपी नहीं जानता कि पीड़ित SC/ST समुदाय से है तो नहीं लगेगा SC/ST एक्ट

केरल सत्र न्यायालय का बड़ा फैसला
  कोझीकोड/केरल।। एससी एसटी एक्ट की यह मंशा बिल्कुल भी नहीं है कि निर्दोष व्यक्ति को फंसाया जाए मासूम इस गंभीर और कठोर एक्ट का शिकार हो परंतु ऐसे लोग जो अपने अधिकारों को नहीं जानते और उन्हें झूठे एससी/एसटी एक्ट के मामले में फंसा दिया जाता है तो उन्हें पुलिस गिरफ्तार कर लेती है और तत्काल जेल भेज दिया जाता है। ऐसे में आपको इस कानून के सारे दांव पेंच जानना आवश्यक केरल के एक कोर्ट ने एक शानदार निर्णय दिया है जो आपकी जानकारी के लिए अत्यंत आवश्यक है और बहुत ही महत्वपूर्ण है।
  एट्रोसिटी एक्ट हरिजन एक्ट (एट्रोसिटी एक्ट हरिजन एक्ट) या अत्याचार निवारण अधिनियम Prevention of Atrocities Act जिसे एससी एसटी एक्ट के रूप में भी जाना जाता है। वर्तमान परिदृश्य में काफी बड़े स्तर पर इस अधिनियम का दुरूपयोग देखने को मिल रहा है। वही ज्यादातर इसके शिकार सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार एवं ऐसे लोग हो रहे हैं, जो समाज के मुद्दों को उठाने का काम करते हैं। यह कानून अपने आप में इतना कठोर है कि इसमें आरोपी व्यक्ति के जमानत का कोई भी प्रावधान नहीं है। आरोपी व्यक्ति की तत्काल गिरफ्तारी इसमें सुनिश्चित की जाती है। परंतु व्यापक रूप से इस अधिनियम के दुरुपयोग को देखते हुए अब माननीय न्यायालय ने समय-समय पर ऐसी टिप्पणी की है जिससे कि निर्दोष व्यक्ति को तत्काल जमानत और अग्रिम जमानत और बाद में दोष मुक्ति का लाभ प्राप्त होता है।
सामाजिक कार्यकर्ता के विरुद्ध लेखिका ने दर्ज कराई थी शिकायत
  इसी तरह का एक महत्वपूर्ण निर्णय केरल राज्य के कोझीकोड जिले के विशेष SC/ST न्यायालय के माननीय सत्र न्यायाधीश एस कृष्ण कुमार ने ऐसे ही एक SC/ST के मामले पर सुनवाई करते हुए एक टिप्पणी की है, जिसमें उन्होंने कहा है कि अगर आरोपी यह नहीं जानता कि उसके खिलाफ शिकायत करने वाला पीड़ित SC/ST समुदाय से है, तो आरोपी के ऊपर एससी एसटी एक्ट नहीं लगेगा। 
  बताते चलें कि माननीय सत्र न्यायाधीश यौन उत्पीड़न की एक गंभीर मामले की सुनवाई कर रहे थे जिसमें दलित लेखिका के द्वारा यह शिकायत दर्ज कराई गई थी। जिसके बाद पुलिस ने एट्रोसिटी एक्ट यानी कि SC/ST एक्ट में मुकदमा पंजीबद्ध किया था कि सामाजिक कार्यकर्ता सिविक चंद्रन ने महिला की गर्दन को चूमने का प्रयास किया है।
आरोपी को मिली अग्रिम जमानत
  मनीष सत्र न्यायाधीश एस कृष्ण कुमार ने सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की और उन्होंने कहा कि प्रथम दृष्टया यह मुकदमा कूट रचित प्रतीत होता है और आरोपी की छवि खराब करने के लिए दायर किया गया जान पड़ता है।आरोपी को यह नहीं पता था कि पीड़िता एससी एसटी एक्ट समुदाय से हैं, जिसके बाद विचारण के उपरांत माननीय सत्र न्यायाधीश इस कृष्ण कुमार ने इस मामले में आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता सिविक चंदन को अग्रिम जमानत प्रदान कर दी। न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि प्राथमिकी FIR में यह नहीं लिखा गया है कि आरोपी ने यह जानते हुए कि पीड़िता ST/SC समुदाय से है यह अपराध किया है अथवा न कि आरोपी ने पीड़िता का उत्पीड़न किया है जिससे कि यह मुकदमा प्रथम दृष्टया असत्य प्रतीत होता है।
निष्कर्ष: 
  इस निर्णय का महत्वपूर्ण सार एवं निष्कर्ष हम आपको बता रहे हैं जैसे कि आप इसे अपने उपयोग में ला सकें किसी भी व्यक्ति के ऊपर एससी एसटी SC/ST एक्ट के तहत मामला पंजीबद्ध करने से पहले यह जान लेना आवश्यक है कि उसने जानबूझकर SC/ST समुदाय के व्यक्ति का उत्पीड़न किया है। इसका मतलब यह है कि अगर आरोपी यह नहीं जानता कि सामने वाला व्यक्ति एससी एसटी समुदाय से है, तब आरोपी के ऊपर एससी एसटी एक्ट के तहत मुकदमा पंजीबद्ध नहीं किया जा सकता। एससी एसटी एक्ट के तहत मुकदमा पंजीबद्ध करने के लिए यह जान लेना आवश्यक है कि आरोपी को इस बात का ज्ञान था कि पीड़ित SC/ST समुदाय से हैं।

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