6 फरवरी को लोकसभा और राज्यसभा में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के अभिभाषण पर चर्चा होनी थी। लेकिन दोनों सदनों में लगातार हंगामा होता रहा। कांग्रेस और वामपंथी दलों के सांसद दोनों सदनों में वेल में आकर उद्योगपति गौतम अडानी की कंपनियों में हुई कथित वित्तीय अनियमितताओं की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) या सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा जज से करवाने की मांग करने लगे। सांसदों की नारेबाजी के कारण दोनों सदनों में कार्यवाही सुचारू तौर पर नहीं चल सकी। सवाल उठता है कि क्या गौतम अडानी देश के राष्ट्रपति से भी बड़े हो गए हैं? सब जानते हैं कि संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा होना कितना जरूरी है। राष्ट्रपति का अभिभाषण ही देश की नीतियां और विकास की दिशा को निर्धारित करता है। ऐसे में एक उद्योगपति का विवाद कोई मायने नहीं रखता। यदि किसी उद्योगपति ने गलत किया है तो उस पर संबंधित एजेंसियां कार्यवाही करेंगी। उद्योगपति की अनियमितताओं को लेकर संसद को नहीं चलने देना किसी भी स्थिति में उचित नहीं माना जा सकता। यह भी सब जानते हैं कि लोकसभा और राज्यसभा के संचालन पर एक मिनट पर लाखों रुपया खर्च होता है। सदन को स्थगित करने से पहले लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि सांसदों का हंगामा संसदीय परंपराओं के विपरीत है। उन्होंने कहा कि संसद की कार्यवाही का सीधा प्रसारण हो रहा है, इसलिए पूरा देश इस हंगामे को देख रहा है। उन्होंने कहा कि सदन में हर मुद्दे पर चर्चा कराने को तैयार है। सदस्य जिस मुद्दे पर हंगामा कर रहे हैं उस पर भी चर्चा करवाने को तैयार है। लेकिन किसी को भी अपनी बात संसदीय परम्पराओं के अनुरूप रखनी चाहिए। इसी प्रकार राज्य सभा में भी सभापति जगदीप धनकड़ ने सदस्यों से हंगामा न करने के लिए बार बार आग्रह किया। धनखड़ का भी कहना रहा कि राज्यसभा संसद का उच्च सदन है, इसलिए संसदीय परंपराओं का सम्मान सबको करना चाहिए। कांग्रेस और वामपंथी दल गौतम अडानी के मामले में जेपीसी की मांग पर अड़े हुए हैं। सांसदों का कहना है कि जब तक जेपीसी की मांग नहीं मानी जाती तब तक वे संसद को चलने नहीं देंगे। जेपीसी की मांग टीएमसी भी कर रही है, लेकिन 6 फरवरी को टीएमसी के सांसदों ने वेल में आकर हंगामा नहीं किया। इससे प्रतीत होता है कि टीएमसी के सांसद जेपीसी की जांच तो चाहते हैं, लेकिन संसद को ठप नहीं करना चाहते। लोकसभा में कांग्रेस के सांसदों की संख्या मात्र 52 है, लेकिन हंगामे के कारण लोकसभा को स्थगित करना पड़ रहा है।
पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति
भले ही एक उद्योगपति को लेकर कांग्रेस और वामपंथी सांसद संसद को न चलने दे, लेकिन भारत के लोकतांत्रिक इतिहास के लिए यह महत्वपूर्ण है कि द्रौपदी मुर्मू पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति है। गत वर्ष राष्ट्रपति बनने के बाद यह पहला अवसर रहा जब एक आदिवासी महिला ने राष्ट्रपति के तौर पर संसद में अभिभाषण पढ़ा। ऐसे में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर सदन में चर्चा होनी ही चाहिए। राष्ट्रपति के अभिभाषण में भी ऐसे कई मुद्दे हैं जिनमें चर्चा के दौरान उद्योगपति गौतम अडानी की कंपनियों की अनियमितताओं के मामले उठाए जा सकते हैं। 6 फरवरी को पड़ोसी देश भूटान की संसद के प्रतिनिधि भी लोकसभा में उपस्थित थे। भूटान के प्रतिनिधि भारत की लोकसभा को देखने खासतौर से आए थे। हंगामे के कारण भूटान के सांसद भी लोकसभा की कार्यवाही नहीं देख सके।