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नगर निगम और एडीए के बेईमान चेहरों के नाम उजागर क्यों नहीं करती सरकार?

भाजपा पार्षद वीरेंद्र वालिया की रिश्वतखोरी का है मामला 
  जयपुर/राजस्थान।। 14 फरवरी को अजमेर नगर निगम में भाजपा के पार्षद वीरेंद्र वालिया और उसके दलाल रोशन चीता को 20 हजार रुपए की रिश्वत लेते एसीबी ने गिरफ्तार कर लिया। वालिया पर आरोप है कि उनके वार्ड 79 में ईदगाह कच्ची बस्ती में मकान बनाने वाले से 50 हजार रुपए तक की अवैध वसूली की जा रही थी। जो निर्माणकर्ता वालिया और उसके दलाल को राशि नहीं देते थे उनके मकान पर नगर निगम की जेसीबी आकर खड़ी हो जाती थी। वालिया पर इस तरह की वसूली के अनेक आरोप है। 
  एसीबी ने एक मामला चिह्नित कर वालिया और उसके दलाल को रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया। पार्षदों के कामकाज का तरीका राजस्थान ही नहीं देशभर में एक जैसा है। लेकिन यह हकीकत है कि पार्षद नगर निगम और क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण के अधिकारियों की मिली भगत के बगैर अवैध वसूली नहीं कर सकते है। वीरेंद्र वालिया के मामले में भी यह सवाल उठता है कि आखिर उसी निर्माणाधीन मकान पर जेसीबी क्यों पहुंचती थी, जिसके बारे में वालिया शिकायत करता था? यदि ईदगाह कच्ची बस्ती में अवैध निर्माण हो रहे थे तो नगर निगम को समान रूप में कार्यवाही करनी चाहिए थी। 
  नगर निगम का प्रशासन अब चाहे तो सफाई दे, लेकिन यह सही है कि निगम के अधिकारियों की मिली भगत के बगैर कोई पार्षद अवैध वसूली नहीं कर सकता है। वीरेंद्र वालिया जो 50-50 हजार रुपए की वसूली कर रहा था उसका कुछ हिस्सा निगम के अधिकारियों और कार्मिकों तक पहुंचता है। यदि हिस्सा न पहुंचे तो निगम द्वारा नोटिस देने और जेसीबी भेजने की कार्यवाही नहीं होती। वीरेंद्र वालिया के वार्ड का कुछ हिस्सा अजमेर विकास प्राधिकरण के अधीन भी आता है। जो हाल नगर निगम का है वही हाल एडीए का भी है। एडीए में फाइल अटकी पड़ी रहती है, लेकिन जब पार्षद नुमा दलाल से संपर्क किया जाता है, तब फाइल क्लीयर हो जाती है। स्थानीय निकाय से जुड़े इन दोनों विभागों में भ्रष्टाचार चरम पर है।
  सबसे गंभीर बात यह है कि इन दोनों ही विभागों में ऊपर तक कोई सुनने वाला नहीं है। पीड़ित व्यक्ति अपने छोटे छोटे कार्य के लिए धक्के खाता रहता हैे। जबकि बड़े के कार्य रिश्वत के बल पर तत्काल हो जाते हैं। यूं तो इन दोनों ही विभागों में भारतीय प्रशासनिक सेवा के ऊर्जावान अधिकारी आयुक्त के पद पर नियुक्त है। लेकिन इसके बाद भी विभागों की हर टेबल पर भ्रष्टाचार नजर आता है। 
 जाहिर है कि आयुक्त के स्तर पर भी सुनवाई नहीं हो रही है। चूंकि लोगों के जायज कार्य ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ हो जाए तो पार्षदों के द्वारा भी रिश्वतखोरी नहीं हो सकती है। वीरेंद्र वालिया के सामने नगर निगम और एडीए के उन बेईमान चेहरों का नाम उजागर होना चाहिए जो दलालों के माध्यम से भ्रष्टाचार कर रहे हैं। वीरेंद्र वालिया के खिलाफ तो भाजपा के पूर्व पार्षद चंद्रशे सांखला सक्रिय थे, इसलिए वालिया गिरफ्तार हो गए। यदि विस्तृत जांच पड़ताल की जाए तो दोनों महकमों में वालिया जैसे कई लोग पकड़े जा सकते हैं। कहने को तो वालिया एक पार्षद है, लेकिन उनकी संपत्ति करोड़ों में है। यह भाजपा के लिए भी बदनामी का सबब है। वालिया जैसे व्यक्तियों को एक नहीं दो दो बार पार्षद का उम्मीदवार बना दिया जाता है।

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