सत्ता का घमंड भी ऐसा की अपनी सरकार का बिल सरेआम फाड़ दिया।
चलो! अंबानी का तो पीछा छूटा
भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गांधी को लगता है कि उनके शरीर में असली महात्मा गांधी की आत्मा ने प्रवेश कर लिया है। इसीलिए 26 फरवरी को रायपुर में कांग्रेस के 85 वें राष्ट्रीय अधिवेशन के समापन सत्र में राहुल ने स्वयं को सत्याग्रही बताया और मौजूदा प्रधानमंत्री व उनकी पार्टी भाजपा को सत्ताग्रही बताया। ऐसा प्रतीत होता है कि राहुल के सलाहकार उन्हें होमवर्क नहीं करवाते हैं। देश को आजाद हुए 75 वर्ष हुए हैं और इन 75 वर्षों में से 60 वर्ष राहुल गांधी की दादीजी श्रीमती इंदिरा गांधी, उनके पिता जवाहर लाल नेहरू, पिताजी राजीव गांधी और गांधी परिवार के इशारे पर चली पीवी नरसिम्हा राव और डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार रहीं।
राहुल गांधी की उम्र 52 साल है और कांग्रेस 60 साल सत्ता में रही, लेकिन फिर भी राहुल स्वयं को सत्याग्रही और मोदी भाजपा को सत्ताग्रही बता रहे हैं। जन्म के साथ ही सत्ता का स्वाद का घमंड कितना था, यह देशवासियों ने डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार के बिल को सार्वजनिक तौर पर फाड़ते हुए देखा है। तब क्या राहुल ने सत्याग्रही के तौर पर अपनी सरकार का बिल फाड़ा था? सब जानते हैं कि जो एसपीजी की सुरक्षा सिर्फ प्रधानमंत्री के लिए थी, उसे राहुल गांधी के परिवार ने किस प्रकार हथिया लिया था। यदि सत्याग्रही की मानसिकता थी तो फिर प्रधानमंत्री वाली सुरक्षा क्यों स्वीकार की?
असल में सत्ता छीनने के बाद भी गांधी परिवार सत्ता का सुख नहीं छोड़ना चाहता। छत्तीसगढ़ के रायपुर में सत्याग्रही होने की बात कही, उसी रायपुर में राहुल गांधी के लिए दो किलोमीटर लंबे मार्ग को फूलों से ढक दिया। असल में कांग्रेस को लगता था कि जिस प्रकार चौधरी चरण सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी आदि की सरकार चली गई उसी प्रकार नरेंद्र मोदी की सरकार भी चली जाएगी। लेकिन 2019 में मोदी सरकार 2014 से भी ज्यादा जन समर्थन मिला। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी राजनीतिक पंडितों का मानना है कि 2019 से ज्यादा बहुमत मिलेगा। एक और मोदी सरकार लगातार मजबूत हो रही है तो दूसरी देश के अनेक राजनीतिक दल कांग्रेस को प्रमुख विपक्षी दल बनाने को तैयार नहीं है। लोकसभा में 545 में से कांग्रेस के पास मात्र 52 सीटें हैं और मात्र तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकारें है, इनमें से दो राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में इसी वर्ष विधानसभा के चुनाव होने हैं। देश के राजनीतिक हालातों को देखते हुए राहुल गांधी ने स्वयं को सत्याग्रही स्वीकारा यह अच्छी बात है, लेकिन कोई नेता या पार्टी सत्ता ग्रही अपने आप नहीं बन जाते। सत्ता ग्रही तो देश की जनता बनती है और जनता तब बनाती है, जब कोई प्रधानमंत्री स्वयं को प्रधानसेवक साबित करता है। जब तक देश की जनता मोदी को प्रधान सेवक के तौर पर स्वीकार कर रही है, तब तक राहुल गांधी को सत्याग्रही ही बना रहना होगा।
अंबानी का पीछा छूटा
कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में यह भी घोषणा की गई कि उद्योगपति गौतम अडानी के खिलाफ 6 मार्च से देश भर में धरना प्रदर्शन होंगे। इसमें आम लोगों को यह बताया जाएगा कि नरेंद्र मोदी ने किस प्रकार अडानी को फायदा पहुंचाया है। अब राहुल गांधी अडानी के साथ-साथ रिलायंस समूह के मुकेश अंबानी का भी नाम लेते थे। लेकिन राहुल ने रायपुर अधिवेशन में अंबानी का एक बार भी नाम नहीं लिया। ऐसा प्रतीत होता है कि राहुल ने अब अंबानी का पीछा छोड़ दिया है। यह बात अलग है कि अडानी को कांग्रेस शासित राजस्थान में अनेक रियायत दी हैं, लेकिन इस पर राहुल गांधी चुप रहते हैं। हो सकता है कि आने वाले दिनों में अडानी का भी पीछा छूट जाए।