कारगिल युद्ध में 437 जवान शहीद हुए इनमें से 142 राजपूत थे
क्या इन राजपूतों ने जाति के कारण बलिदान दिया?
ऐसे स्पष्टवादी थे करणी सिंह सेना के संस्थापक लोकेंद्र सिंह कालवी
जयपुर/राजस्थान।। 14 मार्च को तड़के जयपुर के एसएमएस अस्पताल में करणी सेना के संस्थापक और राजस्थान में जन आंदोलन के प्रमुख लोकेंद्र सिंह कालवी का निधन हो गया। 68 वर्षीय कालवी के परिवार से जुड़े समाजसेवी विक्रम टापरवाड़ा ने बताया कि स्वर्गीय कालवी का अंतिम संस्कार 14 मार्च को दोपहर बाद नागौर-डेगाना स्थित उनके पैतृक गांव कालवी में किया जा रहा है। कालवी के निधन से राजस्थान में जन आंदोलन को झटका लगा है। कालवी जन आंदोलन के लिए हमेशा तत्पर रहे। करणी सेना और वर्ष 2003 में सामाजिक न्याय मंच की स्थापना भी कालवी ने जन आंदोलनों को लेकर ही की।
कालवी की भाजपा और कांग्रेस दोनों से ही निकटता रही, लेकिन वे हमेशा स्पष्टवादी रहे। कालवी पर जातिवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगा। उन्होंने इस आरोप को अपने तरीके से स्वीकार किया। कालवी ने सार्वजनिक मंचों से कहा कि जो अपनी जात का नहीं वो अपने बाप का नहीं और जो बाप का नहीं वो राष्ट्र का नहीं। उन्होंने कहा कि मैं सबसे पहले अपनी जाति का हूं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि मैं राष्ट्र भक्त नहीं हूँ। कालवी ने उदाहरण देते हुए कहा कि कारगिल युद्ध में 437 जवान शहीद हुए, इनमें से 248 राजस्थान के थे, शहीद हुए जवानों में 142 राजपूत समाज के थे। कालवी का सार्वजनिक सभाओं में कहना रहा कि 142 राजपूत जवानों ने क्या राजपूत जाति के लिए अपना बलिदान दिया? कालवी ने कहा कि राजपूत जवानों ने भी देश की खातिर अपना बलिदान दिया।
इतिहास गवाह है कि मातृभूमि की रक्षा के लिए राजपूत समाज ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया है। आर्थिक आधार पर आरक्षण मिले इसकी कालवी ने पुरजोर मांग की। समाज में सामाजिक कुरीतियों को मिटाने में कालवी का बहुत बड़ा योगदान रहा। हालांकि लोकेंद्र कालवी स्वयं तो सांसद या विधायक नहीं बन सके, लेकिन उनके पिता कल्याण सिंह कालवी नागौर के सांसद रहे और केंद्र में मंत्री भी बने।