नई दिल्ली।। कांग्रेस के पूर्व सांसद राहुल गांधी का यह सवाल वाजिब है कि उद्योगपति गौतम अडानी की शेल कंपनियों में 20 हजार करोड़ रुपए का निवेश किसने किया? राहुल के इस सवाल का जवाब अडानी समूह को देना चाहिए। अडानी की कंपनियों के शेयर देश के लाखों नागरिकों के पास है, ऐसे में शेयर होल्डरों को भी यह जानने का अधिकार है कि 20 हजार करोड़ रुपए कहां से आया? लेकिन इसके साथ ही अडानी को सार्वजनिक तौर पर भ्रष्ट कह कर राहुल गांधी ने अडानी को मानहानि का मुकदमा दायर करने का अवसर दे दिया है। 25 मार्च राहुल ने जो प्रेस कॉन्फ्रेंस की उस में अडानी को भ्रष्ट कह कर संबोधित किया।
हालांकि राहुल के निशाने पर पीएम मोदी थे, लेकिन उन्होंने अडानी को भ्रष्ट कहा। संसद की सदस्यता छीनने से गुस्साए राहुल गांधी ने अडानी को भ्रष्ट तो कह दिया, लेकिन मानहानि का मुकदमा दायर होने पर अदालत में अडानी को भ्रष्ट साबित करना आसान नहीं होगा। सवाल यह भी है कि जो अडानी भ्रष्ट है, उनसे कांग्रेस शासित राजस्थान और छत्तीसगढ़ में करोड़ों रुपए का निवेश क्यों करवाया जा रहा है? अडानी इन दोनों राज्यों में न केवल निवेश कर रहे हैं, बल्कि सरकार से रियायती दरों पर हजारों बीघा भूमि भी प्राप्त कर रहे हैं। राजस्थान में अडानी द्वारा खरीदे गए महंगे कोयले का बोझ भी बिजली उपभोक्ताओं पर डाला गया है।
राहुल, पीएम मोदी पर अडानी को संरक्षण देने का आरोप लगाते हें, लेकिन ऐसा ही संरक्षण अडानी को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी दे रहे हैं। यदि अडानी के फोटो मोदी के साथ हैं तो अशोक गहलोत के साथ भी है। 25 मार्च को प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक पत्रकार ने जब राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अडानी के निवेश पर सवाल पूछा तो राहुल गांधी नाराज हो गए। उल्टे पत्रकार पर आरोप लगाया कि आप किसी से आदेशित होकर मेरे मुद्दे को भटकाना चाहते हो।
राहुल गांधी भले ही इस सवाल का जवाब न दें, लेकिन देश की जनता तो यह जानना चाहेगी ही कि राहुल गांधी को कांग्रेस शासित प्रदेशों में अडानी के निवेश पर एतराज क्यों नहीं है? जब अडानी राजस्थान और छत्तीसगढ़ में तो कांग्रेस को अच्छे लगते हैं, लेकिन दिल्ली में नहीं। राहुल गांधी चाहते हैं कि अडानी समूह की कंपनियों को जो ठेके दिए गए हैं उन्हें रद्द किया जाए। अच्छा हो कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अडानी के ठेकों को रद्द कर कांग्रेस एक उदाहरण पेश करे। यदि ऐसा होता है तो फिर केंद्र सरकार पर भी दबाव पड़ेगा। लेकिन राजस्थान और छत्तीसगढ़ में तो अडानी के पैसे से कांग्रेस तो काम करवाए, लेकिन दिल्ली में अडानी के पैसे से एतराज किया जाए, यह नहीं हो सकता।