भाविना पटेल का जीवन एक सच्ची प्रेरणादायक गाथा है, जिसमें उन्होंने बिना पैरों के दुनिया जीतने का हौसला और साहस दिखाया है। उनका जन्म 6 नवंबर 1986 को गुजरात के मेहसाणा जिले के वडनगर तहसील के सुंधिया गाँव में हुआ था। एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाली भाविना, एक साल की उम्र में पोलियो की वजह से निचले शरीर से विकलांग हो गईं। लेकिन इस कठिनाई ने कभी उनके सपनों को धूमिल नहीं होने दिया।
भाविना ने 12 साल की उम्र में अहमदाबाद में ब्लाइंड पीपल्स एसोसिएशन (BPA) में कंप्यूटर कोर्स के लिए दाखिला लिया। यहीं पर उन्होंने टेबल टेनिस के खेल से परिचय किया और इसमें गहरी रुचि विकसित की। उन्होंने इस खेल को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया और कुछ ही समय में इसमें निपुणता हासिल कर ली।
भाविना पटेल ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में 28 से अधिक पदक जीते हैं। 2021 के टोक्यो पैरालंपिक में, उन्होंने महिलाओं की सिंगल्स क्लास 4 स्पर्धा में रजत पदक जीतकर इतिहास रच दिया। वह पहली भारतीय महिला टेबल टेनिस खिलाड़ी बनीं, जिन्होंने पैरालंपिक में पदक जीता। इस अद्वितीय उपलब्धि ने पूरे देश को गर्वित किया और उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन और देश के प्रति योगदान के लिए उन्हें 2021 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अर्जुन पुरस्कार भारत के खिलाड़ियों को उनके खेल में असाधारण प्रदर्शन के लिए दिया जाने वाला एक प्रमुख सम्मान है। यह पुरस्कार न केवल भाविना की मेहनत और समर्पण को मान्यता देता है, बल्कि यह भी साबित करता है कि शारीरिक चुनौतियों के बावजूद, यदि हौसला बुलंद हो, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं होता।
भाविना पटेल की यह यात्रा केवल खेल की दुनिया में जीत की नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी प्रेरणादायक कहानी है, जो हमें यह सिखाती है कि मुश्किलें चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हों, अगर आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प हो, तो दुनिया को जीतना संभव है। उनका जीवन हमें यह संदेश देता है कि सच्ची ताकत शरीर में नहीं, बल्कि मन और आत्मा में होती है।