कठपुतली कला की महान साधिका भीमव्वा डोड्डबालप्पा शिल्लेक्याथर को 2025 के पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया!
कर्नाटक की प्राचीन कला ‘तोगलु गोम्बेयाटा’ को जीवंत बनाए रखने वाली भीमव्वा अम्मा पिछले 70 वर्षों से इस कला में योगदान दे रही हैं।
12 साल की उम्र में ही उन्होंने अपने बुजुर्गों को देखकर कठपुतली कला सीखी, और विवाह के बाद भी अपनी कला को जारी रखा।
दुनियाभर के मंचों पर भारत की पारंपरिक कला का परचम लहराने वाली भीमव्वा अम्मा ने अमेरिका, पेरिस, इटली, स्विट्जरलैंड, हॉलैंड, ईरान, इराक और दुबई तक अपनी कला का जादू बिखेरा।
2014 में उन्हें ‘राज्योत्सव पुरस्कार’ मिला था, और अब पद्मश्री सम्मान से नवाज़ा गया है। भीमव्वा अम्मा न सिर्फ एक कलाकार हैं, बल्कि एक प्रेरणा हैं, जो यह दिखाती हैं कि परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए उम्र कोई बाधा नहीं होती!